नये वर्ष से है ,हम सबको
उम्मीदें कुछ खास
आँगन के बूढ़े बरगद की
झुकी हरिक डाली
मौसम घर का बदल गया ,
फिर
विवश हुआ माली
ठिठुर रहे है सर्द हवा में
भीगे से अहसास
दरक गये दरवाजे घर के
आंधी थी आयी
तिनका तिनका भी उजड़ गया
बेसुध है माई
जतन कर रही बूढी साँसे
आये कोई पास
चूँ चूँ करती नन्हीं चिड़िया
नयी जगह घबराय
दुनियाँ उसकी बदल गयी है
कौन उसे समझाय
ऊँची ऊँची अटारियों पे
सूनेपन का वास
नए वर्ष के आगमन का
पंछी गाते गीत
बागों की कलियाँ भी झूमे
भौरों का संगीत
नयी ताजगी ,नयी उमंगें
मन में है उल्लास
इस नये वर्ष से है सबको
उम्मीदें कुछ खास।
-- शशि पुरवार
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
आदरणीया शशिजी, बरगद का बिम्ब सदा से अनुभवी, संवेदनशील, पारिवारिक और उम्रदराज़ व्यक्ति का ही होता है लेकिन उसके प्रयोग में जो सावधानी बरती जानी चाहिये उसमें हुई चूक के कारण इंगित किया गया है.
आपकी इस सकारात्मक कोशिश पर मेरी हार्दिक बधाइयाँ और असीम शुभकामनाएँ प्रेषित हैं.
सादर
शशि जी, नए वर्ष की उम्मीदों को जगाती सुंदर रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिये।
माननीय सौरभ जी , प्राची जी ,
१ आपने आँगन के बरगद वाला कथ्य उठाया है , मुझे ज्ञात है कल्पना जी के नवगीत पर इस पर चर्चा हो चुकी है , फिर भी मैंने इसका प्रयोग किया , आप देखेंगे कई रचनाओ में इसका प्रयोग देखा गया है , मैंने इसे एक ह बिम्ब के रूप में लिया है , घर के बुजुर्ग की तुलना बरगद से की है इसीलिए आँगन का बरगद लिखा है ,
२ प्राची जी हरिक को हर एक के रूप में ही प्रयोग किया था , पर अब बदलाव कर दिया है , इस शब्द को भी कई रचनाओ में प्रयुक्त होते देखा था , पर मुझे संतुष्टि नही हुई इसीलिए बदल दिया , वैसे इन शब्दो का प्रयोग नवगीत में करना चाहिए या नहीं , थोडा विस्तार से बताएं , कुछ शब्द उर्दू में भी प्रयोग होते है ,
प्राची जी , आपने आंचलिकता के सम्बन्ध में मार्गदर्शन प्रदान किया , इस पक्ष के बारे में आपसे थोडा और जानना चाहूंगी , कृपया थोडा विस्तार पूर्वक बताएं। ३ बंद , उस छोटे बच्चे को लेकर लिखा गया है जब परिवार अलग होते है तो एकाकीपन बच्चे नहीं कह सकते , और पूरा नवगीत एक परिवार के तीन भाव को लेकर बनाया है ,
आपके और सौरभ जी के कमेंट्स की तो सदैव प्रतीक्षा रहती है , यह चर्चा हर बार बहुत कुछ सिखलाती है
सादर
शशि पुरवार
नमस्ते सौरभ जी , प्राची जी , देर से आने के लिए माफ़ी चाहूंगी , नेट इतने दिनों से इतना परेशां कर रहा कि क्या कहे , अभी शुरू हुआ तो सबसे पहले सोचा रिप्लाई दे दूं नहीं तो कब बंद हो जाये कह नहीं सकते , यह मैंने ठीक करके लिखा था आपके समक्ष --- पुनः
नये वर्ष से है ,हम सबको
उम्मीदें कुछ खास
आँगन के बूढ़े बरगद की
झुकी हुई डाली
मौसम घर का बदल गया ,फिर
विवश हुआ माली
ठिठुर रहे है सर्द हवा में
नम हुये अहसास
दरक गये दरवाजे घर के
आंधी थी आयी
तिनका तिनका उजड़ गया फिर
बेसुध है माई
जतन कर रही बूढी साँसे
आये कोई पास
चूँ चूँ करती नन्हीं चिड़िया
समझ नहीं पाये
दुनियाँ उसकी बदल गयी है
कौन उसे बताये
ऊँची ऊँची अटारियों पे
निर्जनता निवास
नए वर्ष का देख आगवन
पंछी गाते गीत
बागों की कलियाँ भी झूमे
भ्रमर का संगीत
नयी ताजगी ,नयी उमंगें
मन में है उल्लास
नये वर्ष से है हम सबको
उम्मीदें कुछ खास।
-- शशि पुरवार
आदरणीया शशिजी, जबतक मैं आपकी इस रचना पर आऊँ, पाठकों ने बहुत कुछ साझा कर दिया है. डॉ. प्राची ने सटीक बातें कही हैं. शायद आपने अभी तक उन्हें देखा नहीं है. वैसे पंक्तियों की मात्रिकता को प्रारम्भिक स्तर पर सही कहा जा सकता है.
’आँगन में बरगद’ आदि बिम्बों को लेकर आदरणीया कल्पनाजी के नवगीत पर सार्थक चर्चा भी हो चुकी है.
आप यदि मंच पर रेगुलर रहतीं तो संभवतः आपको भी जानकारी हो चुकी होती.
बहरहाल, प्रस्तुति हेतु बधाई.. .
नववर्ष आगमन पर नए सवप्नों के साथ ही मन उल्लास से भर जाता है..नयी उम्मीदें मन में जन्मती हैं इस एहसास को पिरोते हुए नवगीत पर सुन्दर प्रयास हुआ है आदरणीया शशि पुरवार जी..जिसके लिए बहुत बहुत बधाई स्वीकारिये
पर इस प्रस्तुति के शिल्प पर अवश ही कुछ कहना चाहूँगी
* नवगीत में गेयता कई जगह बाधित है.. मात्रिकता कहीं 15-10, कहीं 15 -11, तो कहीं 16 -10 या 16-11 हो रही है.
*//आँगन के बूढ़े बरगद की.//.................आँगन में बरगद तो अवश्य ही नहीं लगाया जाता..आँगन में तो तुलसी, हरसिंगार, नीम आदि होते हैं...बरगद या पीपल से तो लोग वैसे ही दूर रहते हैं.
*//झुकी हरिक डाली// ....................ये हर एक को ही हरिक लिखा गया है क्या ?
*//तिनका तिनका भी उजड़ गया//.............इसमें भी शब्द ज़बरदस्ती का लग रहा है
*तीसरे बंद में घबराय, समझाय जैसे शब्दों के माध्यम से आंचलिकता आरोपित सी लग रही है..क्योंकि आपके इस गीत की शैली आंचलिक नहीं है.
इन सभी बिन्दुओं पर यह नवगीत अभी और समय की मांग करता सा दीखता हैं ..
सादर शुभकामनाएं
वाह! बहुत सुन्दर! आपको हार्दिक बधाई!
आदरणीया शशि जी बेहद सुन्दर नवगीत रचा है आपने नव वर्ष के उपलक्ष्य में इस हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें.
आँगन के बूढ़े बरगद की .. इस पंक्ति पर पुनः विचार कर लें. सादर
नए वर्ष के आगमन का
पंछी गाते गीत
बागों की कलियाँ भी झूमे
भौरों का संगीत
नयी ताजगी ,नयी उमंगें
मन में है उल्लास
इस नये वर्ष से है सबको
उम्मीदें कुछ खास।--------सुन्दर गीत रचना के लिए बधाई एवं नव वर्ष के मंगल कामनाए आदरणीया शशि पुरवार जी
शशि जी,,,,सुन्दर ,,,मनभावन,,,,नवगीत हेतु अनेकानेक बधाइयां आपको,,,,,,,,,
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