क्षणिकाएं --
१
प्रतिभा --
नहीं रोक सके,
काले बादल
उगते सूरज की किरणें।
२
सपने --
तपते हुए रेगिस्तान
की बालू में चमकता हुआ
पानी का स्त्रोत, औ
जीने की प्यास.
३
आशा -
पतझड़ के मौसम में
बसंत के आगमन का
सन्देश देती है,
कोमल प्रस्फुटित पत्तियां।
४
संस्कार -
रोपे हुए वृक्ष में
मिलायी गयी खाद,
औ खिले हुए पुष्प।
५
पीढ़ी -
बीत गयी सदियाँ
नही मिट सकी दूरियाँ,
अनवरत चलता हुआ
एक लम्बा रास्ता।
६
मित्रता -
जीवन के सफ़र में
महकता हुआ
हरसिंगार।
-- शशि पुरवार
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
aap sabhi mitro ka tahe dil se abhaar ,
saurabh ji , prachi ji aapke sujhavo ka swagat hai :)
सर्वप्रथम इन्हें क्षणिकायें न कहें. ये तो, समझिये, संज्ञाओं की भावुक परिभाषाएँ दी हैं आपने.
यह अवश्य है बिम्बों में नवीनता उचित होती.
फिरभी , आपका प्रयास गंभीर व रोचक लगा है.
सादर
सुन्दर क्षणिकाएं प्रस्तुत की हैं प्रिय शशि पुरवार जी
फिर भी सब पहचाने से बिम्ब लगे, कुछ नव्य बिम्ब भी होते तो रचनात्मकता के साथ और ज्यादा मज़ा आता...
इस प्रयास के लिए ह्रदय से शुभकामनाएं
सुन्दर क्षणिकाएं ......आपको हार्दिक बधाई!
अच्छी क्षणिकाएँ! आपको हार्दिक बधाई!
क्षणिकाओं में 'और' के स्थान पर 'औ' का प्रयोग क्या आवश्यक है!
५
पीढ़ी -
बीत गयी सदियाँ
नही मिट सकी दूरियाँ,
अनवरत चलता हुआ
एक लम्बा रास्ता।.........बहुत सुंदर.
आदरणीया शशि जी, सभी क्षणिकाएं सुंदर व् सार्थक है हार्दिक बधाई आपको
बहुत सुन्दर सार्थक रचनाएँ आदरणीया
सुंदर क्षणिकाएं बधाई आपको आ0 शशि जी ।
आदरणीया शशि जी , सभी क्षणिकायें सुन्दर हैं , आपको बहुत बधाइयाँ ॥
मित्रता - जीवन के सफ़र में
महकता हुआ
हरसिंगार। ------------- बहुत खूब ॥
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