फूल बागों में खिले ये सबके मन को भाते है
मंदिरों के नाम पर ये रोज तोड़े जाते है .
फूल माला में गुथे या केश की शोभा बने
टूट कर फिर डाल से ये फूल तो मुरझाते है
फूल का हर रंग रूप तो सुरभि भी पहचान है
फूल डाली पर खिले तो भौरों को ललचाते है
फूल चंपा के खिले या फिर चमेली के खिले
फूल सारे बाग़ के मधुबन को ही महकाते है
भोर उपवन की देखो तितली से ही गुलजार हुई
फूलों का मकरंद पीने भौरे भी मंडराते है
पेड़ पौधो से सदा हरियाली जीवन में रहे
फूल पत्ते पेड़ की मंजुलता को दरसाते है
---- शशि पुरवार
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
आदरणीया शशि जी ग़ज़ल पर आपका प्रयास बहुत ही अच्छा है मतले में आपने मंदिरों के नाम पर ये रोज तोड़े जाते हैं. आदरणीया फूल केवल मंदिरों के नाम पर ही तो नहीं तोड़े जाते न. कुछ अशआर अभी और कसावट की मांग कर रहे हैं. खैर इस प्रयास पर बधाई स्वीकारें.
सौरभ जी नमस्ते ,बहुत बहुत धन्यवाद , आपने बिलकुल सत्य कहा , हो सकता है कहीं चुक होगी ,बहुत पहले यह गजल लिखी थी कल दिखी तो पोस्ट कर दी ,पुनः अवलोकन करती हूँ ,फिर भी यदि आप इंगित करना चाहे तो हम सीधे कलम तलवार लेकर गजल की कमियाँ का पैबंद दूर कर मखमल लगा देते है। आभार ,मार्गदर्शन स्नेह बनाये रखें :)
सभी मित्रो का तहे दिल से बहुत बहुत आभार ,आप सभी की प्रोत्साहित करती हुई प्रतिक्रिया ने उर्ज्वासित किया।
//फूल बागों में खिले ये सबके मन को भाते है
मंदिरों के नाम पर ये रोज तोड़े जाते है .//
मतला झट से आकर्षित करता है , बढ़िया है ।
ग़ज़ल पर अच्छा प्रयास हुआ है बधाई आदरणीया शशि पुरवा जी ।
अच्छी मंशा ..सुन्दर भाव ..शिल्प के लिए ग़ज़ल के आलेख पढ़े ..सीखें ..हम सब सीख रहे हैं ..हार्दिक शुभकामनायें !!
बढ़िया गज़ल के लिए बधाई।
सादर,
विजय निकोर
एक सुंदर प्रस्तुति दी है आपने आदरणीया शशि जी... बधाई हो आपको....
बहुत सुंदर गजल, बहुत बहुत बधाई आदरणीया शशि जी
अच्छा प्रयास हुआ है, आद. शशिजी. कई मिसरों में बह्र का उचित निर्वहन होना बाकी है.
आपकी प्रस्तुति पर अभी तक पढ़ चुके सभी सुधी पाठकों ने वाह किया है. ओबीओ का मंच रचना में हुई किसी गलती पर अगाह करना भी सिखाता है. इस हेतु रचनाकार और जानकार पाठक दोनों को संवेदनशील, आग्रही व सहयोगी होना आवश्यक है.
सादर
बहुत सुंदर गजल कही है शशि जी, हार्दिक बधाई आपको
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