For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गजल - शशि पुरवार

२१२२ २१२२ २१२
जंग दौलत की छिड़ी है रार क्या
आदमी की आज है दरकार क्या १

जालसाजी के घनेरे मेघ है
हो गया जीवन सभी बेकार क्या२


लुट रही है राह में हर नार क्यों
झुक रहा है शर्म से संसार क्या ३

छल रहे है दोस्ती की आड़ में
अब भरोसे का नहीं किरदार क्या ४

गुम हुआ साया भी अपना छोड़कर
हो रहा जीना भी अब दुश्वार क्या ५


धुंध आँखों से छटी जब प्रेम की
घात अपनों का दिखा गद्दार क्या६

इन निगाहों में खलिस थी पल रही
आइना भी खोलता है सार क्या ७


खिड़कियाँ तो बंद हिय की खोलिए
माफ़ अपनों को करो ,तकरार क्या८


धड़कने क्यों हो रही है अजनबी
रंग जीवन के सभी उपहार क्या ९


बाँट लो खुशियाँ सभी जीवन है कम
ख्वाब अँखियों के करे साकार क्या १०

"शशि " कहे तुम रंज अपने भूलकर
बढ़ चलो राहों में अपनी ,वार क्या ११

----------- शशि पुरवार

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 428

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by shashi purwar on August 24, 2014 at 6:37pm

आप सभी माननीय सुधिजनो का हृदय तल  से आभार ,  आप सभी की अनमोल  टिप्पणी ने  रचना को गौरान्वित किया और हमें बहुत उर्ज्वासित किया

Comment by Meena Pathak on August 23, 2014 at 1:59pm

लाजवाब गज़ल हेतु बहुत बहुत बधाई आप को

Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 22, 2014 at 2:42pm

आदरणीया शशि जी ..इस सुंदर ग़ज़ल के हार्दिक बधाई ..सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 22, 2014 at 1:28pm

आदरणीया शशिजी, ग़ज़ल विधा पर आपका प्रयास अच्छा लगा.

यों इस ग़ज़ल के कुछ शेरों के कथ्यों में तार्किकता आवश्यक है. 

बहरहाल, आपके इस गंभीर प्रयास के लिए बधाई .....

Comment by विजय मिश्र on August 21, 2014 at 12:57pm
वर्तमान की गंदगियों को अच्छे शब्दों से नवाजा है ,रचना अपने उदेश्य में सफल हो , समाज से कलुषता समाप्त हो | ईश्वर से प्रार्थना है |

बाँट लो खुशियाँ सभी जीवन है कम
ख्वाब अँखियों के करे साकार क्या |- बहुत प्रभावित किया |साधुवाद शशिजी
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 20, 2014 at 1:55pm

शशि जी

बहुत लाजवाब गजल i


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 20, 2014 at 9:49am

लुट रही है राह में हर नार क्यों
झुक रहा है शर्म से संसार क्या 

गुम हुआ साया भी अपना छोड़कर
हो रहा जीना भी अब दुश्वार क्या  -----आदरणीया शशि जी , बहुत सुन्दर ग़ज़ल और इन अश 'आर के लिए बधाइयाँ |

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on August 19, 2014 at 9:15pm

आदरणीया शशि पुरवार जी, सदर अभिवादन!

मेरे हिशाब से प्रासंगिक पंक्तियाँ- 

लुट रही है राह में हर नार क्यों
झुक रहा है शर्म से संसार क्या ३ साधुवाद!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

AMAN SINHA posted a blog post

पुकार

कैसी ये पुकार है? कैसा ये अंधकार है मन के भाव से दबा हुआ क्यों कर रहा गुहार है? क्यों है तू फंसा…See More
1 hour ago
Nisha updated their profile
22 hours ago
Nisha shared Admin's discussion on Facebook
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Chetan Prakash's blog post कुकुभ छंद आधारित सरस्वती गीत-वन्दनाः
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। सुन्दर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा सप्तक- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार। दोहे के बारे में सुझाव…"
yesterday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा सप्तक- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"सार्थक दोहे हुए, भाई मुसाफिर साहब ! हाँ, चौथे दोहे तीसरे चरण में, संशोधन अपेक्षित है, 'उसके…"
Thursday
Chetan Prakash posted a blog post

कुकुभ छंद आधारित सरस्वती गीत-वन्दनाः

दुर्दशा हुई मातृ भूमि जो, गंगा ...हुई... .पुरानी है पावन देवि सरस्वती तुझे, कविता-कथा सुनानी है…See More
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

दोहा सप्तक- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

जलते दीपक कर रहे, नित्य नये पड्यंत्र।फूँका उन के  कान  में, तम ने कैसा मंत्र।१।*जीवनभर  बैठे  रहे,…See More
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-98 (विषय: अवसर)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर उपस्थितिभाव.पक्ष की कमी बताते हुए मार्गदर्शक टिप्पणी हेतु हार्दिक…"
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-98 (विषय: अवसर)
"मेरे सुझाव को स्वीकार कर तदनुरूप रचना में सुधार करने के लिए मैं आपका आभारी हूँ, आदरणीया विभा रानी…"
Wednesday
vibha rani shrivastava replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-98 (विषय: अवसर)
"अवसर : शुभेक्षु "आपको सर्वोच्च शैक्षिक डिग्री अनुसन्धान उपाधि प्राप्त किए इतने साल गुजर गये!…"
Wednesday
vibha rani shrivastava replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-98 (विषय: अवसर)
"जी महोदय Saurabh Pandey जी हार्दिक धन्यवाद आपका गलतियाँ सुधार ली जायेंगी"
Wednesday

© 2023   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service