२२ २२ २२ २२ २२ २२ २
पीते अश्क़ समंदर के आवारा ये बादल
लुटते हैं दुनिया के लिए हमेशा ये बादल
माँगा नहीं हिसाब कभी अपने अहसानो का
निभा रहे हैं दस्तूर भी निराला ये बादल
हर एक चेहरे पर देखो प्यास झुलसती सी
किसकी प्यास बुझाए एक अकेला ये बादल
कभी रुलाये कभी हसए बतियाये संग में
कजरारी आँखों की याद दिलाता ये बादल
गरजकर सुनाये हाले दिल भी अपना लेकिन
सब दरवाजे बंद खड़ा तनहा ये बादल
दुनिया में बदनाम दो ही शख्स आवारापन में
इक कोई गुमनाम फ़कीर दूसरा ये बादल
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
धन्यवाद दोस्तो,,,,,,,,,,,,,,,,,, सर जहाँ तक मैंने पड़ा है मुझे लगता है ये छूट ली जा सकती है ,,,,,,, और तरही ग़ज़ल ने भी इसे साबित कर दिया ,,,,,,,,, बाकी विद्वान जन भी बता देगे ,,,,,,,,,,,,,,,,,,
बदलों की महिमा का बखान करती इस बेहतरीन मुसलसल गजल के लिए बहुत बहुत बधाई आ0 गुमनाम भाई ।
आदरणीय ग़ज़ल तो बेहद पसंद आये अपनी जानकारी के लिए बह के बिषय में कुछ जानकारी चाहता हूँ ..क्या इसमें भी २२ को १२१ ११२ २११ करने की सुबिधा है जैसा इस बार तरही मुशायरे के ग़ज़ल में है ...कृपया जानकारी देने का कष्ट करें सादर
बहुत बढ़िया आदरणीय गुमनाम जी बहुत बहुत बधाई
dhanywaad sir ji ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
आदरनीय गुमनाम भाई , अच्छी गज़ल कही है , दिली बधाई स्वीकार करें ॥
अति सुन्दर
दुनिया में बदनाम दो ही शख्स -------
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