२१२२ २१२२ २
लाज़ गहना बेचकर आई
नार जब यारो नगर आई
ख्वाब में जब तू नज़र आई
कमरे में खुश्बू बिखर आई
बेवफा का जिक्र आया गर
आँखे तुझ पर घूमकर आई
इश्क़ ने जब हाथ थामा तो
हुश्न की सूरत निखर आई
खत किताबों में पड़ा पाया तो
याद तेरी रहगुजर आई
जिक्र हो जब भी कभी उसका
यूँ लगे गोया सहर आई
ख्वाब आये आँख में बरबस
जब जवानी की उमर आई
दिल दहल सा उठता है माँ का
सरहदों से जब खबर आई
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
waah laxman dhami ji khoob achha laga ,,,,,,,,,,,, sir aapse baat ho sakti hai ,,,,,,,,,,, fon no,........... gar aap chahen...
लाज़ गहना बेचकर आई
नार जब यारो नगर आई.......... क्या कहने गुमनाम भाई
इश्क़ ने जब हाथ थामा तो
हुश्न की सूरत निखर आई...........बहुत खूब
जिक्र हो जब भी कभी उसका
यूँ लगे गोया सहर आई..........बहुत ही लाजवाब शेर
ख्वाब आये आँख में बरबस
जब जवानी की उमर आई..........कटु सत्य
दिल दहल सा उठता है माँ का
सरहदों से जब खबर आई .... एक यादगार शेर
आ0 गुमनाम भाई इस छोटी बहर की बेहतरीन गजल के लिए हार्दिक बधाई ।
आदरणीय गुमनाम भाई , बहुत लाजवाब ग़ज़ल खी है , बधाइयाँ स्वीकार करें ॥
इश्क़ ने जब हाथ थामा तो
हुश्न की सूरत निखर आई
दिल दहल सा उठता है माँ का
सरहदों से जब खबर आई ----- बहुत खूब भाई ॥
खत किताबों में पड़ा पाया तो ------- ये मिसरा बेबह्र हो रहा है ॥
dhanywaad dosto,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
गुम्नाम् जी
बेहतरीन i आख़िरी शेर ने तो जान ही निकाल ली i
इश्क़ ने जब हाथ थामा तो
हुश्न की सूरत निखर आई............वाह! बहुत सुंदर, दिली बधाई आपको आदरणीय गुमनाम जी
आदरणीय गुमनाम जी बहुत बढ़िया बेहतरीन ग़ज़ल है बहुत बहुत बधाई आपको
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online