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मिलो गर ज़िन्दगी से तुम कोई फ़रियाद मत करना
बिठाना बैठना हँस लेना दिल नाशाद मत करना
रखो दिल काबू में पहली नज़र के प्यार में यारो
जमाना कहता खुद को कैस ओ फरहाद मत करना
किताबें मजहबी रहने दो इन अलमारियों में बंद
मिलो जो आदमी से पोथियों को याद मत करना
सियासत की फरेबी चाल में फंसकर ऐ लोगो तुम
मुहब्बत चैन अमन को तुम कभी बर्बाद मत करना
मैं उधड़े जख्मो की तुरपाई में जीवन ये जीता हूँ
मेरे गम से खुदा मुझको कभी आज़ाद मत करना
मौलिक व अप्रकाशित
गुमनाम पिथौरागढ़ी
Comment
आपकी इस प्रस्तुति पर दिली दाद प्रेषित है. सुधीजनों के कहे पर ध्यान देना उचित होगा.
शुभेच्छाएँ.
आदरणीय गुमनाम जी,
ग़ज़ल अच्छी है, हार्दिक साधुवाद, किन्तु राजेश कुमारी जी के सुझाव गौर करने लायक हैं |
किताबें मजहबी रहने दो इन अलमारियों में बंद
मिलो जो आदमी से पोथियों को याद मत करना...........वाह! क्या बात कही है आदरनी गुमनाम जी. दिली बधाई आपको
गुमनाम जी ,बहुत अच्छा प्रयास है मतला अच्छा लगा भाव स्पष्ट भी है |दुसरे शेर का भाव सानी में उलझ गया है,यही तीसरे शेर में हुआ उला बहुत जबरदस्त लेकर चले किन्तु सानी में स्पष्ट कम हो गई विशवास है इन को आप दुरुस्त कर सकते हैं |
सियासत की फरेबी चाल में फंसकर ऐ लोगो तुम
मुहब्बत चैन अमन को तुम कभी बर्बाद मत करना------इसकी तक्तीअ दुबारा कर लीजिये ,भाव बहुत अच्छे तथा स्पष्ट हैं
अंतिम शेर भी अच्छा है
आपको बहुत- बहुत बधाई
shukriya dosto ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
गुमनाम जी
भाव की बात करे तो सभी अशआर बेहतरीन i
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