जब यादों की शबनम रोती है
तब सारी शब नम सी होती है
मेरी परवाह करे क्यों दुनिया
ज़ख्मो पर वाह सदा होती है
जगमग देखी जो मेरी दुनिया
जग मग में खार पिरोती हैं
प्रिय तम में उसको छोड़ गया
वो प्रियतम की खातिर रोती है
मूसा फिर आये राह दिखाने
राह मुसाफिर की आंसा होती
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
aabhari hooon ki aapko rachna pasand aai.......................
राह मुसाफिर की आंसा होती .....है गलती वश छूट गया है ..राह के प्रयोग के कारण bhr
शब्दों की जादूगरी ...कमाल की इस रचना के लिए ढेरों बधाई स्वीकार करें सादर
आ. गुमनाम भाई , ग़ज़ल मे शब्दों से खेलना अच्छा लगा !! बधाइयाँ ॥
शब्दों का अच्छा प्रयोग है।
dhanywaad dosto apka sahayog prerana deta hai,,,,,,,,,,,,
कहते है कि ‘गुमनाम’ का है अंदाजे बयां और ही.......
बहुत बहुत सुन्दर ..सादर
अलग अंदाज़ में कही गई गज़ल है बहुत बहुत बधाई आपको
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