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ग़ज़ल ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,गुमनाम पिथौरागढ़ी

जब यादों की शबनम रोती है   

तब सारी शब नम सी होती है


मेरी परवाह करे क्यों दुनिया
ज़ख्मो पर वाह सदा होती है

जगमग देखी जो मेरी दुनिया
जग मग में खार पिरोती हैं

प्रिय तम में उसको छोड़ गया
वो प्रियतम की खातिर रोती है

मूसा फिर आये राह दिखाने

राह मुसाफिर  की आंसा होती 


मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by gumnaam pithoragarhi on July 4, 2014 at 9:59pm

aabhari hooon ki aapko rachna pasand aai.......................

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 4, 2014 at 2:02pm

राह मुसाफिर  की आंसा होती  .....है गलती वश छूट गया है ..राह के प्रयोग के कारण bhr

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 4, 2014 at 1:30pm

शब्दों की जादूगरी ...कमाल की इस रचना के लिए ढेरों बधाई स्वीकार करें सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 4, 2014 at 11:48am

आ. गुमनाम भाई , ग़ज़ल मे शब्दों से खेलना अच्छा लगा !! बधाइयाँ ॥

Comment by mrs manjari pandey on July 3, 2014 at 8:53pm
जब यादों की शबनम रोती है
तब सारी शब नम सी होती है

आदरणीय गुमनाम जी रूई के फाहे सी भीगी ग़ज़ल अच्छी लगी
Comment by Tilak Raj Kapoor on July 3, 2014 at 1:24pm

शब्‍दों का अच्‍छा प्रयोग है। 

Comment by gumnaam pithoragarhi on July 2, 2014 at 4:02pm

dhanywaad dosto apka sahayog prerana deta hai,,,,,,,,,,,,

Comment by Ravi Prabhakar on July 2, 2014 at 1:54pm

कहते है कि ‘गुमनाम’ का है अंदाजे बयां और ही.......

Comment by savitamishra on July 2, 2014 at 10:21am

बहुत बहुत सुन्दर ..सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 2, 2014 at 8:50am

अलग अंदाज़ में कही गई गज़ल है बहुत बहुत बधाई आपको

कृपया ध्यान दे...

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