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आ0 भाई विजय शंकर जी नवनिर्माण का आहवान करती इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई ।
बहुत सुन्दर विचार i
लीक लीक कायर चलें लीकहि चलें कपूत
लीक छांड़ि तीने चलें शायर , सिंह, सपूत i
नए राहो के अन्वेषी आपका स्वागत i
आदरणीय डा.विजय शंकर जी. आपकी रचनाओं में हमेशा जीवन के प्रति एक गहरे विचार पढने को मिले है,जिनमें आप बहुत ही सुन्दरता से एक सकारात्मक अंत देते है. सहज-सरल शब्दों का उपयोग भी बखूबी रहता है जिससे रचना के भाव को आसानी से समझा जा सकता है.
चलो , नई दिशायें खोज डालतें हैं.
कुछ नया ,बिलकुल नया कर डालते हैं............सच! है कब तक, अगर चौराहे पर खड़े हो किसी नई राह पर निकलना ही बेहतर होता है, आपको हार्दिक बधाइयाँ
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