आत्मपीडा में अनुभूति सुख की लिए
दग्ध होता रहा अनुभवो में सदा
सत्य ही उस करुण के ह्रदय कोश में
पल रहा कोई जीवंत अनुराग है i
मृत्यु आती नहीं चैन मिलता नहीं
युद्ध होता है विष चेतना में प्रबल
दंश लेता है जब फिर न देता लहर
क्रुद्ध फुंकारता नेह का नाग है i
मौन बेसुध पड़ा प्राण के अंक में
याद की वेदना में सजल जो हुआ
स्वेद-श्लथ गात में कुछ चुभन सी लिए
स्नेह सोया हुआ था गया जाग है i
सिसकियो की व्यथा आंसुओ ने सुनी
वाग्देवी ने उसको मुखर कर दिया
मन चकित दर्प कवि-बोध का भ्रम लिए
सोचता इसमें क्या उसका प्रतिभाग है
शब्द-व्यायाम से गीत बनते नहीं
वेदना के बिना व्यर्थ अनुराग है
गीत तो आंसुओ में ढले है सदा
यदि ह्रदय में प्रबल आग ही आग है i
(अप्रकाशित व मौलिक)
Comment
आदरणीय सौरभ जी
आप से प्रोत्साहन मिलने का आनंद ही जुदा है i कृपया ऐसे हे स्नेह बनाये रखें i सादर i
कर्मठता और संलग्नता को शब्दबद्ध कर आपने रचनाधर्मिता को मान दिया है, आदरणीय गोपालजी..
इस सुन्दर और पठनीय रचना के लिए हार्दिक बधाई !
सादर
आदरणीय लडीवाला जी
आपकी सस्तुति का एहतराम करता हूँ i
मित्र भंडारी जी
आपके स्नेह का आभारी हूँ i
जीवन में वेदना को शब्द देते है जो, कवि बन जाते है वो, इसीलिए कहा गया है -वियोगी होगा पहला कवि, मुहं से निकली होगी आह !
इसी तरह के निकले मामिक भाव लिए शब्दों से बुनी रचना के लिए हार्दिक बधाई डॉ गोपाल नारायण जी -
शब्द-व्यायाम से गीत बनते नहीं
वेदना के बिना व्यर्थ अनुराग है
गीत तो आंसुओ में ढले है सदा
यदि ह्रदय में प्रबल आग ही आग है i- ह्रदय की आग में झुलसे को कौन बचा पाया है, अनुपम भाव रचना हुई है
आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , जीवन की तमाम पीड़ाओं को बहुत सुन्दर सार्थक शब्द मिले हैं ॥ बहुत मार्मिक ! सुन्दर गीत रचना के लिये आपको दिली बधाइयाँ ॥
शब्द-व्यायाम से गीत बनते नहीं
वेदना के बिना व्यर्थ अनुराग है
गीत तो आंसुओ में ढले है सदा
यदि ह्रदय में प्रबल आग ही आग है i बहुत सुन्दर !!
मीना जी
आपका शत -शत आभार i
आदरणीय पंकज जी
आपके स्नेह को प्रणाम i
आदरणीय करुण जी
आपके स्नेह का आभार i
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ..बधाई आप को | सादर
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