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हो किसी बात पर यकीं यारो
हौसला दिल में अब नहीं यारो
इक दफ़ा शोरे इन्क़िलाब उठा
दब गई फिर सदा वहीं यारो
काफिले रौशनी के दूर हुए
छुप गया चाँद भी कहीं यारो
दिल सुलगता है मेरा रह-रह के
बैठे चुपचाप हमनशीं यारो
आबले पड़ गये हैं पैरों में
गर्म होने लगी ज़मीं यारो
आइने का बिगड़ता क्या लेकिन
तर हुई खूँ से ये ज़बीं यारो
मेरा महबूब बनके इस ग़म ने
हैं भिगोए ये आस्तीं यारो
आबले = छाले
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय जितेन्द्र भाई आपका हार्दिक आभार
आदरणीय सुशील सरना सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय गिरिराज सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय नरेन्द्र सिंह जी आपका हार्दिक आभार
हो किसी बात पर यकीं यारो
हौसला दिल में अब नहीं यारो
मेरा महबूब बनके इस ग़म ने
हैं भिगोए ये आस्तीं यारो
बहुत खूब,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
हो किसी बात पर यकीं यारो
हौसला दिल में अब नहीं यारो
इक दफ़ा शोरे इन्क़िलाब उठा
दब गई फिर सदा वहीं यारो
सुभान अल्लाह i शिज्जू भाई i आप उन चंद शायरों में से है जिनका नाम ही गजल पढने पर आमादा करता है i
आबले पड़ गये हैं पैरों में
गर्म होने लगी ज़मीं यारो..............बहुत ही खुबसूरत शेर, दिल को छू गया. दिली बधाइयाँ लीजिये आदरणीय शिज्जू जी
हो किसी बात पर यकीं यारो
हौसला दिल में अब नहीं यारो
इक दफ़ा शोरे इन्क़िलाब उठा
दब गई फिर सदा वहीं यारो
वाह वाह वाह क्या बात है आदरणीय शिज्जु शकूर भाई .... मजा आ गया .... इस दिलकश अहसासों की ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई
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