यह बात 24 जून 1989 की है मेरे पिता जी जनपद देवरिया के पडरौना में तैनात थे। हम लोग वही से अपनी कार यू0पी0के0 4038 से पडरौना से अपनी मौसी की शादी में भाग लेने धरहरा मुँगेर जा रहे थे। हमारे साथ हमारी माता जी, दो भाई, मामा और वह मौसी जिनकी शादी थी और उनकी एक मित्र रूबी थी। हम लोग सुबह 6 बजे पडरौना से निकल कर 12 बजे गोपालगंज बिहार के पास पहुँचे थे उसी समय हम लोगो की कार खराब हो गयी हमारे मामा गोपालगंज बिहार से लाये मगर शा वह कार किसी तरह को गोपालगंज के अपने गैरेज में लाया मगर वह कार को पूरी तरह से ठीक करने में 2 दिन का समय मागा चूकि हम लोग शादी में जाना था सेा उसने कहा कि गोपलगंज शहर सहित पूरे बिहार के माहौल ठीक नहीं है आप लोगो को पूरी रात बिहार में यात्रा करनी है जो काफी कठिन होगा आप लोग वापस लौट जाये मैं 100 किलोमीटर तक जाने लायक कर देता हॅू। हम लोग वापस लौटने लगे मगर दुर्भाग्य देखीये जिस जगह में दिन में कार खराब हुई थी वही फिर खराब हो गयी रात के 9 बज रहे थे हम लोग परेशान उस समय हम लोगी गाडी में विवाह में देने हेतु 2 लाख नगद एवं लगभग 20 भर जेवर थे और अन्य सामान हम लोग परेशान हो गये अौरते रोने लगी, तब हम लोगो किसी तरह सडक के किनारे बसे गाँव में पहुँचे और मदद मॉंगी वह लोग तुरन्त बाहर निकले और गॉंव से एक किलोमीटर दूर सडक पर आये तथा सारा सामन निकल कर एक बैलगाडी पर लादे हम लोगो को बैठाया और खेतो के सहारे गोपालगंज स्टेशन चल दिये मौसम पूरी तहर खराब था आसमान में काले बादल अधेरी रात डरावना माहैाल मगर वह 10 की संख्या में हथियारो से लैस होकर चल रहे थे अभी हम आधे रास्ते पहुॅचे ही थे कि कुछ लूटेरो ने हमें घेर लिया मगर साथ चल रहे लोगो ने उनका मुकाबल किया जिसमें कुछ लोग घायल होगये हमारी आवाजे और चीखे सुन कर पास के गाँव के लोग निकल कर बाहर आये तब तक लूटेरे भाग गये थे, हम गाडी में घायलो को लाद कर गोपालगंज रेलवे आये वहा भी पूरी तरह सन्नाटा केवल एक दुकान झोपडी में खुली थी हम लोग भूख से व्याकुल थे, उसने हम लोगों को उस समय 30 रूपया प्लेट चावल दाल सब्जी बना कर खिलाया, खाने में पत्थरो का बोलबाला था मगर चंडाल पेट सब हजम करने को तैयार। रेलवे स्टेशन से पुलिस को सूचना दिया गया वही से घयलो केा अस्पताल और हम लोगो को एक पैसेजर ट्रेन से पडरौना भेजा गया। हम लोग सुबह 6 बजे 24 घंटे में जिन्दगी की एक खौफनाक सफर करके लौटे मगर हम लोगो का मन आज भी उन गोपाल गंज बिहार के लोगो के प्रति श्रधा से झुक जाता है।किस प्रकार उन्होने अपनी जान पर खेल कर हमें तथा हमारे सामानो को बचाया ओर सुरक्षित पहुँचा और उसके एवज में ईलाज तक के पैसे लेने से इन्कार कर दिये।
मौलिक एवं अप्रकाशित अखंड गहमरी गहमर गाजीपुर
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सर्व प्रथम मैं देरी के लिये क्षमा चाहता हूँ मैं बाबा बरफानी के दर्शन के लिये गया हुआ था। हम आपके उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन के सदैव आकांक्षी है मेरा प्रणाम स्वीकार करे आदरणीय सौरभ पांडे जी आपके सहयोग से अच्छा करने का प्रयास करता रहूँगा
सर्व प्रथम मैं देरी के लिये क्षमा चाहता हूँ मैं बाबा बरफानी के दर्शन के लिये गया हुआ था। हम आपके उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन के सदैव आकांक्षी है मेरा प्रणाम स्वीकार करे आदरणीया आशा शैली जी
सर्व प्रथम मैं देरी के लिये क्षमा चाहता हूँ मैं बाबा बरफानी के दर्शन के लिये गया हुआ था। हम आपके उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन के सदैव आकांक्षी है मेरा प्रणाम स्वीकार करे आदरणीया कल्पना रमानी जी
सर्व प्रथम मैं देरी के लिये क्षमा चाहता हूँ मैं बाबा बरफानी के दर्शन के लिये गया हुआ था। हम आपके उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन के सदैव आकांक्षी है मेरा प्रणाम स्वीकार करे आदरणीय Shubhranshu Pandey जी
सर्व प्रथम मैं देरी के लिये क्षमा चाहता हूँ मैं बाबा बरफानी के दर्शन के लिये गया हुआ था। हम आपके उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन के सदैव आकांक्षी है मेरा प्रणाम स्वीकार करे आदरणीया मीना पाटेकर जी
सर्व प्रथम मैं देरी के लिये क्षमा चाहता हूँ मैं बाबा बरफानी के दर्शन के लिये गया हुआ था। हम आपके उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन के सदैव आकांक्षी है मेरा प्रणाम स्वीकार करे आदरणीय Santlal Karun जी
रोमांच से भरपूर इस संस्मरण के लिए हार्दिक बधाई अखण्ड भाई.
बहुत रोचक ढंग से प्रस्तुति आयी है.
शुभेच्छाएँ
जीवन में ऐसे अनुभव न हों तो अच्छे-बुरे का पता ही नहीं चलता।दुनिया में यदि बुराइयाँ हैं तो अच्छाइयाँ भी हैं।
दुनिया में यदि बुराइयाँ हैं तो अच्छाइयाँ भी हैं।
संसार में अच्छाई का अभी भी बहुमत है। वृतांत साझा करने के लिए धन्यवाद आदरणीय अखंड जी
आदरणीय अखण्ड जी,
एक सुन्दर कथा.
इसके पहले आपने बर्फ़ानी बाबा का यात्रा वृतांत लिखा था.इस बार की भी कथा बहुत ही रोमांचक है. गोपाल गंज के लोगों का साहस सुन कर अच्छा लगा.
सादर.
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