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कभी महसूस कर मेरी कमी भी
तेरी आँखों में हो थोड़ी नमी भी
नदी की धार सी पीड़ा बही, पर
किनारों के दिलों में क्या जमी भी ?
खुशी तो है उजालों की, मगर क्यों
कहीं बाक़ी दिखी है बरहमी* भी ( खिन्नता )
उड़ाने आसमानी भी रखो पर
तुम्हे महसूस होती हो ज़मी भी
ये रिश्ता किस तरह का है बताओ ?
अदावत* भी हमी से, हमदमी भी ( दुश्मनी )
उफ़क पे देख लाली है खुशी पर
हवायें लग रहीं हैं कुछ थमी भी
मुझे अफ़सोस है सारे इरादे
अभी कमज़ोर हैं, कुछ मौसमी भी
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सौरभ भाई , आपने सही कहा है , ज़मीं काफिया इस ग़ज़ल के हिसाब से गलत ही है ॥ आपका आभार ॥
आदरणीय राम अवध भाई , बहुत बड़ी ग़लती की तरफ धयान दिलाने के लिये आपका दिल से आभारी हूँ , अन्यथा ले ने का तो कोई सवाल ही पैदा नही होता , यही तो सीखना- सिखाना है । आपका बार बार आभारी हूँ । निः संकोच आगे भी मेरी ग़लतियाँ बतायें ॥
वैसे तो इस शे र को ग़ज़ल से निकलाना ही पड़ेगा फिर भी पहले सुधारने की कोशिश करूँगा ।
ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका बहुत शुक्रिया ॥
आदरणीय राम अवध विश्वकर्माजी का ज़मीं को लेकर अपनी बातें कहना एकदम सही है. यह आश्चर्य ही है कि इस ओर विद्वान ग़ज़लकार और पाठकों का ध्यान नहीं गया.
सादर
उम्दा ग़ज़ल के लिए बधाई परंतु आदरणीय गिरराज जी निम्न शेर में जो शब्द जमी का इस्तेमाल काफिया के लिए किया गया गया है वह
मेरी जानकारी के अनुसार ज़मीन का लघु रूप ज़मीं होता है न की जमी मै तो उर्दू नही जानता ये तो उर्दू भाषा के जानकार ही बता सकते हैं की काफिया जमी होगा या ज़मीं अगर ज़मीं है तो शेर को दुरुस्त करना होगा और अगर जमी है तो मुझे गुस्ताख़ी के लिए माफ़ करना. कृपया अन्यथा न लेना
उड़ानें आसमानी भी रखो पर
तुम्हे महसूस होती हो जमी भी
आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई , गज़ल की सराहना कर उत्साह वर्धन करने के लिये आपका आभारी हूँ ॥
कभी महसूस कर मेरी कमी भी
तेरी आँखों में हो थोड़ी नमी भी ..... बहुत ही दमदार मतला
उड़ाने आसमानी भी रखो पर
तुम्हे महसूस होती हो ज़मी भी ...... क्या कहने अच्छी सीख देता शेर
ये रिश्ता किस तरह का है बताओ घ्
अदावत’ भी हमी सेए हमदमी भी ..... बहुत ही मार्मिक शेर
मुझे अफ़सोस है सारे इरादे
अभी कमज़ोर हैंए कुछ मौसमी भी .......यह भी कम नहीं
आ0 भाई गिरिराज जी , सीधे सरल शब्दों में कही गयी इस बेहतरीन गजल के लिए बहुत बहुत हार्दिक बधाई ।
आदरणीय सौरभ भाई , आपने गज़ल पसंद की तो मानो मेरी कोशिश सफल हो गई , उत्साहवर्धन के लिये आपका आभारी हूँ ॥
आदरणीया राजेश जी , हौसला अफज़ाई के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥
आदरणीय जी एस मिश्रा भाई , गज़ल पर आपकी उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया के लिये आपका आभारी हूँ ॥
जानदार मतला से शुरू हुई ग़ज़ल मानो बहती हुई चली जाती है. वाह-वाह !
शुभ-शुभ
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