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न तो आँधियाँ ही डरा सकीं , न ही ज़लजलों का वो डर रहा
तेरे नाम का लिये आसरा , सभी मुश्किलों से गुजर रहा
न तो एक सा रहा वक़्त ही , न ही एक सी रही क़िस्मतें
कभी कहकहे मिले राह में , कभी दोश अश्कों से तर रहा
कोई अर्श पे जिये शान से , कहीं फर्श भी न नसीब हो
कहीं फूल फूल हैं पाँव में , कोई आग से है गुज़र रहा
तेरी ज़िन्दगी मेरी ज़िन्दगी , हुआ मौत से जहाँ सामना
हुआ हासिलों का शुमार जब , ये सिफर हुआ वो सिफर रहा
कभी था यक़ीन भी छाँव पर , कभी धूप भी थी खिली हुई
हुई बदलियों में वो साजिशें , न वो आफताब न घर रहा
ऐ खुदा तेरे तो जहान की , है हक़ीकतें भी अजब गज़ब
कोई खाया इतना कि मर गया, कोई खा सका न तो मर रहा
गिरी बिजलियाँ यहाँ इस क़दर ,जला ख़्वाब का मेरा आशियाँ
बड़ा अब सुकून हुआ मुझे , न वो घर रहा न वो डर रहा
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मौलिक एवँ अप्रकाशित ( संशोधित )
Comment
वाह वाह वाह बह्र-ए-कामिल ..... बहुत ही उम्दा .... इस कठिन बह्र पर आपका कलाम देखकर दिल बाग़ बाग़ हो गया .... बड़ी नायाब बह्र है गुनगुनाने में जितनी सरल और मनभावन है लिखने में उतनी ही कठिन ... आपने जिस खूबसूरती से निभाया है इस बह्र को दिल से दाद क़ुबूल करें ... क्या बात है ...बहुत ही सुन्दर ..
न तो आँधियाँ ही डरा सकीं , न ही ज़लजलों का वो डर रहा
तेरे नाम का लिये आसरा , सभी मुश्किलों से गुजर रहा...........उम्दा मतला
न तो एक सा रहा वक़्त ही , न ही एक सी रही क़िस्मतें
कभी कहकहे मिले राह में , कभी दोश अश्कों से तर रहा.... दिल लूट लिया इस अशआर ने .....
कोई अर्श पे जिये शान से , कहीं फर्श भी न नसीब हो
कहीं फूल फूल हैं पाँव में , कोई आग से है गुज़र रहा......बहुत ही बेहतरीन शेर
तेरी ज़िन्दगी मेरी ज़िन्दगी , हुआ मौत से जहाँ सामना
हुआ हासिलों का शुमार जब , ये सिफर हुआ वो सिफर रहा .... सुन्दर
कभी था यक़ीन भी छाँव पर , कभी धूप भी थी खिली हुई
हुई बदलियों में वो साजिशें , न वो आफताब न घर रहा.....वाह्ह्हह्ह उम्दा अशआर
ऐ खुदा तेरे तो जहान की , है हक़ीकतें भी अजब गज़ब
कोई खाया इतना कि मर गया, कोई खा सका न तो मर रहा ...बहुत खूब
गिरी बिजलियाँ यहाँ इस क़दर ,जला ख़्वाब का मेरा आशियाँ
बड़ा अब सुकून हुआ मुझे , न वो घर रहा न वो डर रहा......वाह्ह्हह्ह बहुत ही बेहतरीन शेर
क्या आहंग, क्या मयार, दिल में इस ग़ज़ल की खलिश महसूस कर रहा हूँ ..... आपको दिल से बधाई इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए
एक निवेदन है इस ग़ज़ल का टैग बदल दीजिए टैग वाले "गज़ल" के 'ग' में नुक्ता नहीं है जिससे ये आज तक पढने में नहीं आई . सादर
bahut sundar gajal hai adarniy bhaisahab , waah aapki gajal padhkar anand aa jata hai sabhi sher lajabab , hardik badhai aapko
आदरणीय बड़े भाई विजय जी , आपकी सराहना सर आखों पर | आपका बहुत बहुत आभार ||
बहुत ही खूबसूरत गज़ल के लिए बधाई, आदरणीय भाई गिरिराज जी।
आदरणीय सौरभ भाई , सब कुछ इसी मंच से सीखा हुआ है , आप लोगों के मार्ग दर्शन में ॥ हर सराहना में से एक बड़ा हिस्सा ओ बी ओ मंच के लिये निकाल के रख देता हूँ जो कि सही हक़दार भी है ॥ उन महान शायर को , आप सभी को प्रणाम करताहूँ और ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका बहुत आभार प्रकट करता हूँ ॥
आपमें बशीर बद्र की आत्मा ही घुस गयी है, लगता है.. इस टेढ़ी बहर पर आप यों कहते हैं कि रश्क होता है.और क्या खूब कहते हैं, आदरणीय !..
इस शेर पर तो विशेष रूप से दाद दे रहा हूँ -
गिरी बिजलियाँ यहाँ इस क़दर ,जला ख़्वाब का मेरा आसियाँ ... (आशियाँ)
बड़ा अब सुकून हुआ मुझे , न वो घर रहा न वो डर रहा..
सादर
आदरणीय संत लाल भाई , आपकी स्नेहिल सराहना ने मेरा उत्साह दोबारा कर दिया !! आपका तहे दिल से शुक्रिया !!
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी,
हरेक शेर में भरपूर कसाव है और पूरी की पूरी ग़ज़ल बेहतरीन रंगों-आब में पेश हुई है ---
"न तो एक सा रहा वक़्त ही , न ही एक सी रही क़िस्मतें
कभी कहकहे मिले राह में , कभी दोश अश्कों से तर रहा
कोई अर्श पे जिये शान से , कहीं फर्श भी न नसीब हो
कहीं फूल फूल हैं पाँव में , कोई आग से है गुज़र रहा"
...हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ !
आदरणीय जितेन्द्र भाई , आपकी स्नेहिल सराहना के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥
आदरणीय गिरिराज जी. इस विधा कि ज्यादा जानकारी तो नही, पर आपकी हर गजल को पढ़ा है. हर विषय पर आपकी गजलें वाह!!! बहुत खूब रही है. आपको तहे दिल से बधाईयाँ व् शुभकामनायें
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