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कभी महसूस कर मेरी कमी भी
तेरी आँखों में हो थोड़ी नमी भी
नदी की धार सी पीड़ा बही, पर
किनारों के दिलों में क्या जमी भी ?
खुशी तो है उजालों की, मगर क्यों
कहीं बाक़ी दिखी है बरहमी* भी ( खिन्नता )
उड़ाने आसमानी भी रखो पर
तुम्हे महसूस होती हो ज़मी भी
ये रिश्ता किस तरह का है बताओ ?
अदावत* भी हमी से, हमदमी भी ( दुश्मनी )
उफ़क पे देख लाली है खुशी पर
हवायें लग रहीं हैं कुछ थमी भी
मुझे अफ़सोस है सारे इरादे
अभी कमज़ोर हैं, कुछ मौसमी भी
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी,
आज-कल के जीवनगत आचार-व्यवहार पर उम्दा ग़ज़ल; हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ ! --
"ये रिश्ता किस तरह का है बताओ ?
अदावत* भी हमी से, हमदमी भी"
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