२२ २२ २२ २२
सन्नाटा भी पसरा सा है
उसका कमरा बिखरा सा है
अब तुम पास नहीं हो ,शायद
उसका मुखड़ा उतरा सा है
बुत से कैसा कहना सुनना
हाफ़िज़ भी तो बहरा सा है
जीवन हुआ दिसंबर जैसा
आँखों में क्यों कुहरा सा है
देख के तुझे लगता है ये
चाँद कांच का कतरा सा है
गुमनाम बना लो घर कोई
अब खंजर का खतरा सा है
मौलिक व अप्रकाशित
गुमनाम पिथौरागढ़ी
Comment
ग़ज़ल का प्रवाह सही है.
जीवन हुआ दिसंबर जैसा .. इसे मैं यों पढ़ गया ..
जीवन हुआ दिगम्बर जैसा
आँखों में पर कुहरा सा है.
देख के तुझे को तुझे देख के कर लें.
एक अच्छी कोशिश के लिए हार्दिक बधाई, गुमनाम भाई.
जीवन22 हुआ दि22 बर22 जैसा22
दे2 ख के तु121 झे लग22 ता है 22 ये2
चाँ2 द कांच121 का कत22 रा सा 22 है-2
सन्नाटा भी पसरा सा है
उसका कमरा बिखरा सा है----सुन्दर
अब तुम पास नहीं हो ,शायद
उसका मुखड़ा उतरा सा है-----
बुत से कैसा कहना सुनना
हाफ़िज़ भी तो बहरा सा है-----बहुत खूब
जीवन हुआ दिसंबर जैसा---इसकी बह्र फिर से जांच लें
देख के तुझे लगता है ये
चाँद कांच का कतरा सा है----इसकी बह्र भी जांच लें
गुमनाम बना लो घर कोई
अब खंजर का खतरा सा है-----भाव स्पष्ट नहीं है बहर ठीक है
कुछ सुधार के पश्चात् ग़ज़ल निःसंदेह सुन्दर हो जायेगी बहरहाल बधाई आपको
आदरणीय गुमनाम भाई , ग़ज़ल अच्छी कही है , आपको बधाइयाँ ! ४ था और ६वा शेर बात समझा नहीं पा रहे हैं , थोड़ा देखिएगा ||
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