२२ २२ २२ २
दीवारों को दर कर लें
ऐसा अपना घर कर लें
वरना होगा शोर बहुत
ज़ख्मों को अक्षर कर लें
झुकने को तैयार रहे
ऐसा अपना सर कर लें
मान बढ़ेगा नारी का
लज्जा को ज़ेवर कर लें
है कीमत जीवन की ,गर
यादों को हम जर कर लें
जीना आसां होगा , गर
गुमनाम हमसफ़र कर लें
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
इस ग़ज़ल के लिए दिल से शुक्रिया .. ढेर सारी दाद कुबूल करें.
आदरणीय गुमनाम भाई , बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही है , आपको ढेरों बधाइयाँ |
गुमना22 म हमस 121 फ़र कर22 लें 2
kya ye gala hai please bataiega.........................
आ0 गुमनाम भाई जी, प्रणाम! ....//झुकने को तैयार रहे
ऐसा अपना सर कर लें//....अच्छे शेर हुए हैं। बहुत-बहुत बधाई। सादर,
आदरणीय गुमनाम भाई , सधी हुई उम्दा ग़ज़ल कही है आपने। इसके लिए आप बधाई पात्र हैं। हाँ मक्ते के सानी पर जरा ग़ौर जरूर फ़रमाएँ।
गुमनाम जी
एक और अच्छी गजल आप्कीकलम से ---सादर i
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