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पर यहीं पर करार सा है कुछ
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उजड़ा उजड़ा दियार सा है कुछ
पर यहीं पर करार सा है कुछ
गर्मियाँ खून में कहाँ बाक़ी
गर्म हूँ , तो बुखार सा है कुछ
खूब बोले थे खुल के, क्यूँ आखिर
बच गया फिर, उधार सा है कुछ
दिल को बेताबियाँ नहीं डसतीं
प्यार है, या कि प्यार सा है कुछ
फूल कलियों में खूब चर्चा है
अब ख़िंज़ा मे उतार सा है कुछ
टीस कहती है मुझ से रह रह के
कोई अपना ही ख़ार सा है कुछ
दोस्त, संजीदगी से मत लेना
बस कि निकला ग़ुबार सा है कुछ
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आ. सौरभ भाई , गज़ल को आपका अनुमोदन मिलना संतोष कारी है , उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार ।
आ. धर्मेन्द्र भाई , आपकी सराहना ने मेरा उत्साह दोबारा कर दिया । सराहना के लिये आपका दिली शुक्रिया ॥
एक अच्छी ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय गिरिराजभाईजी...
अच्छी ग़ज़ल हुई है आदरणीय गिरिराज जी। दिली दाद कुबूल कीजिए।
आदरणीय भुवन भाई , आपकी स्नेहिल सराहना के ल्लिये आपका आभारी हूँ ||
वाह आदरणीय, छा से जाते हैं आप ! बधाई कबूल करें...
आदरणीय मदन मोहन भाई , ग़ज़ल की सराहना केलिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ।
फूल कलियों में खूब चर्चा है
अब ख़िंज़ा मे उतार सा है कुछ
टीस कहती है मुझ से रह रह के
कोई अपना ही ख़ार सा है कुछ
बहुत सुन्दर
आदरणीय वीनस भाई , बहुत दिनों बाद आपको देख कर अच्छा लगा | आपकी सराहना के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया ||
आदरणीय नादिर खान भाई , हौसला अफजाई के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया |
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