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‘रेप’ को जोकर सरीखों ने कहा जब बचपना - ग़ज़ल

2122    2122    2122    212

*******************************
एक   सरकस   सी   हमारी   आज  संसद  हो गयी
लोक हित की इक नदी जम आज हिमनद हो गयी
**
जुगनुओं से  खो  गये  लीडर  न  जाने फिर कहाँ
मसखरों  की आज  इसमें  खूब  आमद  हो गयी
**
‘रेप’ को  जोकर  सरीखों ने  कहा  जब  बचपना
जुल्म  की  जननी खुशी से  और गदगद हो गयी
**
दे  रहे  ऐसे  बयाँ,  जो   जुल्म   की   तारीफ  है
क्योंकि  सुर्खी  लीडरों का आज मकसद हो गयी
**
जुल्म  की  सरहद   बढ़ी   बेहद  हदों को पार कर
इस चमन में और  छोटी  न्याय की जद हो गयी
**
नित  सियासत   सींचती  पर  खाद  हम देते रहे
भ्रष्टता की  बेल  बढ़कर, जिससे  बरगद हो गयी
**
प्यार  धर्मो  ने  सिखाया   पुस्तकों  में  खूब पर
तोड़  नफरत  हर  हदें अब यार अनहद हो गयी
**
कल तलक जिनका कहा झूठ-सच बकबास था
कुर्सियों  पर  बैठते  हर   बात  मानद  हो गयी
**
रचना - 13 दिसम्बर 2013

मौलिक और अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

Views: 715

Comment

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 8, 2014 at 10:45am

आदरणीय भाई विजय मिश्र जी  गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद । जहां तक विषय के चयन और उसकी प्रस्तुति का प्रश्न है , यह ओ बी ओ परिवार के आप सभी  प्रबुद्ध  सदस्यो के स्नेह और मार्गदशन की वजह से ही सम्भव हो पाता है । शुभ शुभ

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 8, 2014 at 10:41am

आदरणीय भाई सौरभ जी मार्गदर्शन के लिए आभार ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 8, 2014 at 10:41am

आदरणीय भाई गिरिराज जी, गजल की प्रशंसा कर उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद । स्नेह बनाए रखें ।

Comment by विजय मिश्र on August 5, 2014 at 1:26pm
" जुगनुओं से खो गये लीडर न जाने फिर कहाँ
मसखरों की आज इसमें खूब आमद हो गयी

‘रेप’ को जोकर सरीखों ने कहा जब बचपना
जुल्म की जननी खुशी से और गदगद हो गयी | "
धामी भाई , गजल की तारीफ़ से ज्यादा तो दिल करता है कि आपके विषय चयन की प्रसंशा करूँ और अभिव्यक्ति भी उतने ही सधे ढंग से |आजकी नेतागीरी चोर-गिरहकट के कार्य के अतिरिक्त कुछ नहीं |

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 5, 2014 at 1:03pm

कल तलक जिन (२१२२) का कहा जो (२१२२) झूठ सच बक (२१२२) वास था (२१२) .. 

उत्तम !.. . :-))))

सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 5, 2014 at 11:02am

आदरणीय लक्ष्मण भाई , बहुत ही खूब सूरत गज़ल कही है , सभी अशार बेहद सुन्दर हैं । 

जुगनुओं से  खो  गये  लीडर  न  जाने फिर कहाँ 
मसखरों  की आज  इसमें  खूब  आमद  हो गयी

रेप’ को  जोकर  सरीखों ने  कहा  जब  बचपना
जुल्म  की  जननी खुशी से  और गदगद हो गयी  ---- बहुत खूब , भाई जी बधाइयाँ ।


**

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 5, 2014 at 10:40am


आदरणीय सविता बहन गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 5, 2014 at 10:40am


आदरणीय भाई अजय जी इस उत्साहवर्धन के लिए कोटि कोटि आभार ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 5, 2014 at 10:40am


आदरणीय भाई सौरभ जी आपके अनुमोदन से गजल का मान अत्यधिक बढ गया । इस स्नेह के लिए हार्दिक आभार । जिस त्रुटि के बारे में आपने पूछा है दरअसल मूल गजल में यह पंक्ति इस प्रकार ही थी -‘ कल तलक जिनका कहा जो झूठ सच बकवास था ’ शायद कापी पेस्ट करते समय कोई गड़बडी हो गयी जिसे मैं देख नहीं पाया । क्या अब यह आपके हिसाब से ठीक हो गयी है । मार्गदर्शन करें । शुभ शुभ........

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 5, 2014 at 10:39am


आदरणीया महिमा जी गजल की प्रशंसा कर इसका मान बढाने के लिए बहुत बहुत हार्दिक बधाई ।

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