2122 2122 2122 212
*******************************
एक सरकस सी हमारी आज संसद हो गयी
लोक हित की इक नदी जम आज हिमनद हो गयी
**
जुगनुओं से खो गये लीडर न जाने फिर कहाँ
मसखरों की आज इसमें खूब आमद हो गयी
**
‘रेप’ को जोकर सरीखों ने कहा जब बचपना
जुल्म की जननी खुशी से और गदगद हो गयी
**
दे रहे ऐसे बयाँ, जो जुल्म की तारीफ है
क्योंकि सुर्खी लीडरों का आज मकसद हो गयी
**
जुल्म की सरहद बढ़ी बेहद हदों को पार कर
इस चमन में और छोटी न्याय की जद हो गयी
**
नित सियासत सींचती पर खाद हम देते रहे
भ्रष्टता की बेल बढ़कर, जिससे बरगद हो गयी
**
प्यार धर्मो ने सिखाया पुस्तकों में खूब पर
तोड़ नफरत हर हदें अब यार अनहद हो गयी
**
कल तलक जिनका कहा झूठ-सच बकबास था
कुर्सियों पर बैठते हर बात मानद हो गयी
**
रचना - 13 दिसम्बर 2013
मौलिक और अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’
Comment
आदरणीय भाई विजय मिश्र जी गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद । जहां तक विषय के चयन और उसकी प्रस्तुति का प्रश्न है , यह ओ बी ओ परिवार के आप सभी प्रबुद्ध सदस्यो के स्नेह और मार्गदशन की वजह से ही सम्भव हो पाता है । शुभ शुभ
आदरणीय भाई सौरभ जी मार्गदर्शन के लिए आभार ।
आदरणीय भाई गिरिराज जी, गजल की प्रशंसा कर उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद । स्नेह बनाए रखें ।
कल तलक जिन (२१२२) का कहा जो (२१२२) झूठ सच बक (२१२२) वास था (२१२) ..
उत्तम !.. . :-))))
सादर
आदरणीय लक्ष्मण भाई , बहुत ही खूब सूरत गज़ल कही है , सभी अशार बेहद सुन्दर हैं ।
जुगनुओं से खो गये लीडर न जाने फिर कहाँ
मसखरों की आज इसमें खूब आमद हो गयी
रेप’ को जोकर सरीखों ने कहा जब बचपना
जुल्म की जननी खुशी से और गदगद हो गयी ---- बहुत खूब , भाई जी बधाइयाँ ।
**
आदरणीय सविता बहन गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद ।
आदरणीय भाई अजय जी इस उत्साहवर्धन के लिए कोटि कोटि आभार ।
आदरणीय भाई सौरभ जी आपके अनुमोदन से गजल का मान अत्यधिक बढ गया । इस स्नेह के लिए हार्दिक आभार । जिस त्रुटि के बारे में आपने पूछा है दरअसल मूल गजल में यह पंक्ति इस प्रकार ही थी -‘ कल तलक जिनका कहा जो झूठ सच बकवास था ’ शायद कापी पेस्ट करते समय कोई गड़बडी हो गयी जिसे मैं देख नहीं पाया । क्या अब यह आपके हिसाब से ठीक हो गयी है । मार्गदर्शन करें । शुभ शुभ........
आदरणीया महिमा जी गजल की प्रशंसा कर इसका मान बढाने के लिए बहुत बहुत हार्दिक बधाई ।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online