For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कुछ भी कह लो मित्र तुम , विष जब आये काम

सिर्फ दोष अपने कहो , क्यों होते हैं आम

 

कौन काम को देख के , अब देता है दाम  

थोड़ा मक्खन, साथ में , है जो सुन्दर चाम 

 

सूर्य समय से डूब के , खुद कर देगा शाम

नाहक़ बदली हो रही , हट जा, तू बदनाम

 

सबकी मंज़िल है अलग , अलग सभी के धाम  

फिर क्यों छोड़ा साथ वो , पाता  है  दुश्नाम

 

हवा रुष्ट आंधी हुई , धूल उड़ी हर गाम  

कितने नामी के हुये , धूमिल सारे  नाम  

****************************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

 

 

 

Views: 607

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 10, 2014 at 8:26am

आदरणीय राम भाई , आपका बहुत आभार |

Comment by ram shiromani pathak on August 8, 2014 at 4:37pm

     सुन्दर दोहे हुए है आदरणीय। ।  हार्दिक बधाई आपको


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 8, 2014 at 8:23am

आदरणीय आशुतोष भाई , आपका बहुत आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 8, 2014 at 8:22am

आदरणीय प्रदीप कुशवाहा भाई , आपका शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 8, 2014 at 8:21am

आदरणीय जितेन्द्र भाई , आपका आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 8, 2014 at 8:21am

आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी, दोहे बिन्दुवत नही हो पाये इसके लिये क्षमाप्रार्थी हूँ , मै सुधरने और रचना को और सुधारने का हमेशा प्रयास करते रहता हूँ , आशा है आगे कुछ अच्छा कह पाउँ । जो कुछ आपको अच्छे लगे उसके लिये आपका आभारी हूँ ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 8, 2014 at 8:18am

आदरणीय सौरभ भाई , आपकी बताई हुई गलतियाँ सर आखों पर , कुछ तो गलती एक ही तुकांतता पर पाँचो दोहे कहने की कोशिश के कारण हो गई , और कुछ नासमझी से । मै सुधारने की कोशिश जरूर करूँगा , शायद भाव सुधारने के लिये एक ही तुकांतता की ज़िद छोड़नी पड़े । आपकी मूल्यवान प्रतिक्रिया के लिये आपका बहुत आभार । अगर इसी तुकांतता मे सुधरने की गुंजाइश आपको दिखे तो जरूर बतायें ,  मुझे अतीव प्रसन्नता होगी ।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 7, 2014 at 6:58pm

सूर्य समय से डूब के , खुद कर देगा शाम

नाहक़ बदली हो रही , हट जा, तू बदनाम..बेहतरीन  दोहे पढ़कर आनद आ गया ..आदरणीय भाईसाब आपको ढेर सारी बधाई सादर 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on August 7, 2014 at 1:28pm

सीखने  का एक अवसर प्राप्त हुआ आभार .सादर 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 7, 2014 at 12:09pm

बहुत बहुत सुंदर दोहावली पर बधाई आदरणीय गिरिराज जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
13 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Wednesday
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service