For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल ..आँख मूँदते ही ....सारे ख़ुदा गए.

ग़ज़ल ..
गाल गाल गा गा ///// गा गा लगा लगा  
मक्ते से पहले वाले शेर में तकाबुले रदीफ़ है लेकिन solution के आभाव में उसे ऐसे ही स्वीकार किया है. 
.
रंग हम जहाँ में क्या क्या मिला गए
हार कर लो खुद को सब को जिता गए.
.

सब कहें पुराना किस्सा सुना गए,
गो बता के सबकुछ सबकुछ छुपा गए.
.

कुछ कहार मिलकर कमरा सजा गए,
और फिर उसी में तन्हा सुला गए.
.

ख़ाक सबने डाली इसका गिला करें क्या,
हाड माँस मिट्टी, मिट्टी बिछा गए.
.

बाद के सफ़र में मत पूछ क्या हुआ,
आँख मूँदते ही सारे ख़ुदा गए.
.

चाक पर फ़रिश्ते घडने लगे मुझे,
फिर नया ठिकाना मुझ को बता गए.
.

वो जहां अलग था, है ये जहां अलग
'नूर' तुम थे कैसे, क्या होके आ गए.

.
निलेश "नूर"
मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 931

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 10, 2017 at 9:19am

आभार आ. विजय जी 

Comment by vijay nikore on August 11, 2014 at 7:26pm

इस विचारप्रधान गज़ल के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय नीलेश जी।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on August 11, 2014 at 11:53am

शुक्रिया आ. गिरिराज जी ..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 11, 2014 at 10:25am

आदरणीय नीलेश भाई , खूबसूरत  आध्यात्मिक ग़ज़ल के लिए आपको बधाइयाँ ||

Comment by Nilesh Shevgaonkar on August 11, 2014 at 8:38am

आ. सौरभ जी ... आप मर्म तक पहुंचे तो लिखना सफल हुआ..
सादर  


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 11, 2014 at 3:02am

चाहे जिस भी मनोदशा में आपने इस ग़ज़ल पर कलमग़ोई की है, निर्गुण का प्रभाव अत्यंत मुखर है, आदरणीय नीलेशजी.

गहन भाव से पगी ग़ज़ल के शेर जन्म-चक्र के विन्दु साझा कर रहे हैं. दिल से बधाई स्वीकार करें.
सादर

Comment by Nilesh Shevgaonkar on August 9, 2014 at 5:21pm

शुक्रिया आ. डॉ विजय शंकर जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on August 9, 2014 at 5:20pm

शुक्रिया आ. नरेन्द्र सिंह जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on August 9, 2014 at 5:20pm

शुक्रिया आ. डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी 

Comment by Dr. Vijai Shanker on August 9, 2014 at 5:06pm
बहुत सुन्दर आदरणीय नीलेश सेवगांवकर जी , आँखे मूंदते ही… बहुत कुछ कह दिया। बहुत बहुत बधाई .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मुसाफिर' साहब मैं आप की टिप्पणी से सहमत  नहीं हूँ। मेरी ग़ज़ल के सभी शे'र …"
3 minutes ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, सादर अभिवादन। मुशाइरे में सहभागिता के लिए बहुत बधाई। प्रस्तुत ग़ज़ल के लगभग…"
17 minutes ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"अच्छी ग़ज़ल हुई है आदरणीय महेन्द्र जी। थोड़ा समय देकर  सभी शेरों को और संवारा जा सकता है। "
45 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। यह गजल इस बार के मिसरे पर नहीं है। आपकी तरह पहले दिन मैंने भी अपकी ही तरह…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल कुछ शेर अच्छे हुए हैं लेकिन अधिकांश अभी समय चाहते हैं। हार्दिक…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई महेंद्र जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल से मंच का शुभारम्भ करने के लिए हार्दिक बधाई।"
5 hours ago
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

आंचलिक साहित्य

यहाँ पर आंचलिक साहित्य की रचनाओं को लिखा जा सकता है |See More
5 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हर सिम्त वो है फैला हुआ याद आ गया ज़ाहिद को मयकदे में ख़ुदा याद आ गया इस जगमगाती शह्र की हर शाम है…"
6 hours ago
Vikas replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"विकास जोशी 'वाहिद' तन्हाइयों में रंग-ए-हिना याद आ गया आना था याद क्या मुझे क्या याद आ…"
6 hours ago
Tasdiq Ahmed Khan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"ग़ज़ल जो दे गया है मुझको दग़ा याद आ गयाशब होते ही वो जान ए अदा याद आ गया कैसे क़रार आए दिल ए…"
7 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"221 2121 1221 212 बर्बाद ज़िंदगी का मज़ा हमसे पूछिए दुश्मन से दोस्ती का मज़ा हमसे पूछिए १ पाते…"
8 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेंद्र जी, ग़ज़ल की बधाई स्वीकार कीजिए"
9 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service