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एक ग़ज़ल -जब दिल की धड़कने हों थमीं, क्यूँ जिगर चले?

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.

जब रात ढल गई तो सितारे भी घर चले,
कुछ रिंद लड़खड़ाके चले थे, मगर चले. 
.
कुछ सोचने दो मुझ को कमाई का रास्ता. 
शेरो सुखन के दम पे भला कैसे घर चले. 
.
क्या है पड़ी मुझे कि जियूँ मै तेरे बग़ैर, 
जब दिल की धड़कने हों थमीं, क्यूँ जिगर चले? 
.
अब छोड़िये भी फ़िक्र हमारी हुज़ूर आप, 
हम ज़िन्दगी लो आप की आसान कर चले.
.
आराम कर रहे हैं जहाँ ज़िन्दगी के बाद, 
वाँ रात क्या चलेगी भला क्या सहर चले. 
.
कैसे हुनर मिला है ग़ज़लगोई का न पूछ,
हैं शेर आते ग़ैब से जब जब लहर चले. 
.
शाइर मुझे न मान मगर मान ऐ रक़ीब,
हर साँस बह्र में है चले 'नूर' गर चले.

.
निलेश "नूर"

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Comment

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on August 12, 2014 at 10:21pm

शुक्रिया आ. लक्ष्मण जी 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 12, 2014 at 11:55am

कुछ सोचने दो मुझ को कमाई का रास्ता. 
शेरो सुखन के दम पे भला कैसे घर चले.

आ०  भाई  नीलेश  जी , बहुत लाजवाब बात कई है इस शेर में , ढेरों  बधाइयाँ स्वीकारें .

Comment by Nilesh Shevgaonkar on August 11, 2014 at 6:06pm

शुक्रिया आ. गोपाल नारायण जी 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 11, 2014 at 5:38pm

नीलेश जी 

बहुत उम्दा  i  कमाल के अशआर i

कुछ सोचने दो मुझ को कमाई का रास्ता. 
शेरो सुखन के दम पे भला कैसे घर चले. 

कैसे हुनर मिला है ग़ज़लगोई का न पूछ,
हैं शेर आते ग़ैब से जब जब लहर चले. 
.
शाइर मुझे न मान मगर मान ऐ रक़ीब,
हर साँस बह्र में है चले 'नूर' गर चले.

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