२२/२२/२२/२
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रावण को तू राम बता,
और सहाफ़त काम बता. ...सहाफ़त-पत्रकारिता
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बिकने को तैयार हैं सब,
तू भी अपने दाम बता.
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सीख ज़माने वाला फ़न,
धूप कड़ी हो, शाम बता.
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झूठ भी सच हो जाएगा,
बस तू सुब्हो शाम बता.
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चाहे काट हमारा सर,
पर पहले इल्ज़ाम बता.
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क़ातिल ख़ुद मर जाएगा,
बस मक़्तूल का नाम बता.
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निलेश "नूर"
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
कंप्यूटर ख़राब होने के चलते उपलब्ध नहीं हो सका .. क्षमा प्रार्थी हूँ ..
सभी की सराहना के लिए धन्यवाद. आ. सौरभ सर.. याद रखते रखते भी चूक ही जाता हूँ कई बार..मूल प्रति में सुधार कर रहा हूँ.
सादर
किस-किस शेर पर दाद दी जाय ? पूरी ग़ज़ल सीधी और सधी हुई है. दिल से बधाई.
झूठ भी सच हो जाएगा,
बस तू सुब्हो शाम बता.. .. .इस शेर ने तो हर तरह से वो कुछ कहा है, जो समझ में आ रहा है.... . हर जगह. .. ;-)
हाँ, तकाबुले रदीफ़ पर कुछ पारखी आँखें असहज हो सकती हैं.
शुभ-शुभ
छोटी बहर पर बहुत सुन्दर ग़ज़ल लिखी है आपने नीलेश जी मजा आ गया पढ़ के
बिकने को तैयार हैं सब, -----बिकने को तैयार सभी ---करें तो ज्यादा अच्छा लगेगा
तू भी अपने दाम बता.
सीख ज़माने वाला फ़न,
धूप कड़ी हो, शाम बता. ----हाहाहा बहुत सही
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झूठ भी सच हो जाएगा,
बस तू सुब्हो शाम बता. -----जी बार बार रगड़ने से लोहा भी कट जाता है ,झूठ को सुब्हो शाम कहेंगे तो सच मानना ही पड़ेगा :)))
बहुत सुन्दर ग़ज़ल ...दाद कबूलें
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सीख ज़माने वाला फ़न,
धूप कड़ी हो, शाम बता.
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झूठ भी सच हो जाएगा,
बस तू सुब्हो शाम बता.
वाह क्या कहने ...
वाह वाह , वर्तमान की सच्चाई तो यही है लेकिन इसे बदलने का प्रयास भी तो हो रचनाओं में
वाह वा !! छोटी बहर में बहुत सुन्दरता से बाते कहीं है , बधाई इस ग़ज़ल के लिए |
झूठ भी सच हो जाएगा,
बस तू सुब्हो शाम बता...........बहुत सही कहा, बार-बार कहा झूठ शायद सच के सामान ही हो जाता है
लाजवाब गजल हुई आदरणीय निलेश जी, बधाई स्वीकार करें
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सुन्दर गजल कुछ व्यंग रूप में | बहुत खूब ! बधाई श्री निलेश नूर जी
वाह ..आदरणीय नूर जी ..ये तो कमाल की ग़ज़ल है ..हर शेर बेहतरीन ..ताना मारती शानदार ग़ज़ल ..इस रचना के लिए तहे दिल बधाई सादर
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