“भाभी, अगर कल तक मेरी राखी की पोस्ट आप तक नहीं पँहुची तो परसों मैं आपके यहाँ आ रही हूँ भैया से कह देना ” कह कर रीना ने फोन रख दिया|
अगले दिन भाभी ने सुबह ११ बजे ही फोन करके कहा, "रीना राखी पहुँच गई है ”
"पर भाभी मैंने तो इस बार राखी पोस्ट ही नहीं की थी !!! "
(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Comment
रिश्ते को परखने के लिए,किसी को सही जानने के लिए कभी छोटा-सा झूठ भी बोलना पड़ता है ... यह भी तो दुख की बात है न।
ठीक शब्दों में आपकी लघु कथा आज के रिश्तों को बयाँ कर रही है। हार्दिक बधाई, आदरणीया राजेश जी।
जी सही कहते हैं आप आ० विजय मिश्र जी |
आ० विजय मिश्र जी,यदि मन साफ़ हो तो नन्द और भौजाई से बड़ा स्नेह प्यार का रिश्ता हो ही नहीं सकता दोनों चाहें तो गहरी दोस्त बन कर मिसाल कायम कर सकती हैं परिवारों में खुशियाँ भर सकती हैं किन्तु इन रिश्तों का आजकल दूसरा ही चेहरा देखने को मिल रहा है,आपको लघु कथा पसंद आई आपका दिल से आभार |
जी आ० सौरभ जी,सही कहा :-))))) .
//हम लेखक लोग अपने ही नहीं अपने आस पास वालों के दुःख दर्द को भी अपनी रचनाओं के माध्यम से जीते हैं, हैं न ?? //
:-))) .. परहित सरिस धरम नहीं भाई..
प्रिय गीतिका,सच कहा रिश्ते मेंटनेंस चाहते हैं दोनों ही छोर से ...किन्तु इससे उलट हो रहा है न्यूक्लीयर फैमिली बस तू मैं और हमारे बच्चे तक ही सीमित होकर रह गई हैं और किसी का आना जाना सिर्फ और सिर्फ दखल अन्दाजी लगता है और त्यौहार ओपचारिकता भर ...आपको लघुकथा के मर्म ने व्यथित किया होता भी है हम लेखक लोग अपने ही नहीं अपने आस पास वालों के दुःख दर्द को भी अपनी रचनाओं के माध्यम से जीते हैं, हैं न ?? हार्दिक आभार आपका|
आ० सौरभ जी,लघुकथा पर आपकी प्रतिक्रिया एक ओर मेरी कलम को ऊर्जस्वी बना रही है तो दूसरी और मुझे अपनी इस लघुकथा के लिए आश्वस्त भी कर रही है सार्थकता प्रदान कर रही है आपका हृदय तल से आभार |
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