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“भाभी, अगर कल तक मेरी राखी की पोस्ट आप तक नहीं पँहुची तो परसों मैं आपके यहाँ आ रही हूँ  भैया से कह देना ” कह कर रीना ने फोन रख दिया|

अगले दिन भाभी ने सुबह ११ बजे ही फोन करके कहा, "रीना राखी पहुँच गई है ”

"पर भाभी मैंने तो इस बार राखी पोस्ट ही नहीं की थी !!! "


(मौलिक एवं अप्रकाशित )

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 10, 2014 at 4:35pm

विनय कुमार सिंह जी ,लघु कथा पर आपकी प्रतिक्रिया अपने लेखन के प्रति मुझे आश्वस्त की हार्दिक आभार आपका |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 10, 2014 at 4:34pm

प्रिय भैया जितेन्द्र जी.कहानी के मर्म ने आपको छुआ आपके इस अनुमोदन का दिल से आभार . .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 10, 2014 at 4:32pm

आ० डॉ.विजय शंकर जी,कहानी पर आपके अनुमोदन हेतु हार्दिक आभार.   


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 10, 2014 at 4:31pm

मेरी इस लघुकथा को फीचर करने के लिए आ० प्रधान सम्पादक जी का दिल से  आभार, 

Comment by kalpna mishra bajpai on August 10, 2014 at 1:03pm

ओह ये जमाना, दी आप ने बिलकुल सही लिखा । बहुत बधाई /सादर ..............रक्षा-बंधन की हार्दिक बधाई!!!!

Comment by विनय कुमार on August 10, 2014 at 12:37pm

बहुत सटीक और बहुत कुछ कहती लघुकथा के लिए बहुत बहुत बधाई राजेश कुमारीजी..

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 10, 2014 at 10:33am

बहुत ही कम शब्दों में आपने, बहुत कुछ कह दिया. बहन आएगी तो एक-दो दिन दखल जो होगा, इसलिए कह दो जो कहना हो.क्या फर्क पड़ता है. बहुत -२ बधाई आपको आदरणीया राजेश दीदी

Comment by Dr. Vijai Shanker on August 10, 2014 at 9:45am
कभी रिश्तों की अच्छाइयों की मिसाल दी जाती थी ,अब यही रह गया है , बहुत सुन्दर आदरणीय राजेश कुमारी जी , बहुत बहुत बधाई .

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