मैं अपने ही साथ रहूँगा!
खुद में तुझसे बात करूँगा!!
अब चाहे जिससे मिलना हो!
दर्पण अपने साथ रखूँगा!!
मेरे कद को ढाँक सके जो !
ऐसी चादर साथ रखूँगा!!
उनको हँसकर मिलने तो दो!
मैं भी दिल की बात करूँगा!!
बातें बहुत ज़बानी कर लीं!
मैं भी खत इक बार लिखूँगा!!
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राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
हार्दिक आभार आदरणीय विजय निकोर जी ............... सादर
बहुत ही सुन्दर गज़ल बनी है। हारदिक बधाई।
उत्साह वर्धन अनुमोदन व् अमूल्य सुझाव हेतु आपका बहुत बहुत आभारी हूँ आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी ......... सादर
राम भाई, इस ग़ज़ल से आपने हमें एकदम से खुश कर दिया है. शेर कहन से बहुत ही गहन हैं, लेकिन क्या चलते-फिरते लहजे में अपनी बातें कह रहे हैं ! बहुत खूब !
इन दो शेरों के लिहाज पर जितना कहूँ, कम होगा.
अब चाहे जिससे मिलना हो!
दर्पण अपने साथ रखूँगा!!
मेरे कद को ढाँक सके जो !
ऐसी चादर साथ रखूँगा!!
बहुत-बहुत बधाइयाँ !
अलबत्ता, निम्नलिखित शेर को मैं अपनी तरफ से यों परिवर्तन कर पढ़ रहा हूँ. नहीं, मैं परिवर्तन की बात नहीं कर रहा हूँ. यह बस मेरी व्यक्तिगत सोच भर है -
उनको हँसकर मिलने तो दो !
मैं भी हँस कर बात करूँगा !!
बहुत बहुत आभार आदरणीय भाई लक्ष्मण जी.... सादर
बहुत बहुत आभार आदरणीय जीतेन्द्र जी
आ० भाई रामशिरोमणि जी , इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई .
मेरे कद को ढाँक सके जो !
ऐसी चादर साथ रखूँगा!!...........सही निर्णय
बहुत -२ बधाई आपको आदरणीय राम भाई
बहुत ही सुन्दर
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