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ग़ज़ल -ख़ताएँ कुछ रही होंगी, सज़ाए ज़िन्दगी लायक

१२२२/१२२२/१२२२/१२२२ 
.
इरादे मैं यकीनन आज भी छोटे नहीं रखता,
मगर आँखों में अब अपनी तेरे सपने नहीं रखता.  
.
बड़ी शिद्दत से अपने इश्क़-ओ-रंजिश मै निभाता हूँ 
ख़बर रखता तो हूँ सबकी मगर फ़ि
तने नहीं रखता.
.
दिखाएगा वही सबको जो होंगे सामने उसके,

छुपाकर आईना कोई कभी चेहरे नहीं रखता.    
.
लहू के दाग़ कितनें ही पड़े हों रूह पर उसकी,
मगर वो शख्स जूते भी कभी मैले नहीं रखता.
.

ख़ताएँ कुछ रही होंगी, सज़ाए ज़िन्दगी लायक, 
वगरना क्या ख़ुदा मुझको क़रीब अपने नहीं रखता.
.

(मौलिक व् अप्रकाशित)
निलेश "नूर"

Views: 435

Comment

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 23, 2015 at 2:32pm

शुक्रिया आ. सौरभ सर 
आप की नज़रों से गुज़री तो मुकम्मल हो गयी ..
बहुत बहुत धन्यवाद 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 23, 2015 at 2:07pm

एक मतला और चार शेर ..
बस ग़ज़ल पूरी.. मगर हम गुम !
क्या साहब !!

दिखाएगा वही सबको जो होंगे सामने उसके,
छुपाकर आईना कोई कभी चेहरे नहीं रखता.    

लहू के दाग़ कितनें ही पड़े हों रूह पर उसकी,
मगर वो शख्स जूते भी कभी मैले नहीं रखता.

ख़ताएँ कुछ रही होंगी, सज़ाए ज़िन्दगी लायक,
वगरना क्या ख़ुदा मुझको क़रीब अपने नहीं रखता.

’हाथ’ छू लेने दो फूलों (मेरा नाम ले लेना) को इनायत होगी.. इनायत होगी !!

Comment by Nilesh Shevgaonkar on August 20, 2014 at 10:42am

शुक्रिया डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी; आ. मीना पाठक जी; आ गिरिराज जी; आ. लक्ष्मण जी; आ. नरेन्द्र सिंह जी 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 19, 2014 at 10:53am

मगर आँखों में अब अपनी तेरे सपने नहीं रखता. 

आ० नीलेश भाई , हर पंक्ति के लिए दाद कबूल करें l


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 19, 2014 at 8:13am

वाह वा ! क्या खूबसूरत ग़ज़ल कही है , हर शे र उम्दा है , बधाइयाँ आदरणीय नीलेश भाई |

Comment by Meena Pathak on August 18, 2014 at 7:28pm

बहुत खूब ...बधाई 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 18, 2014 at 6:22pm

नूर जी 

बेहतरीन -----

बड़ी शिद्दत से अपने इश्क़-ओ-रंजिश मै निभाता हूँ 
ख़बर रखता तो हूँ सबकी मगर फ़ितने नहीं रखता.

ख़ताएँ कुछ रही होंगी, सज़ाए ज़िन्दगी लायक, 
वगरना क्या ख़ुदा मुझको क़रीब अपने नहीं रखता

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