१२२२/१२२२/१२२२/१२२२
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इरादे मैं यकीनन आज भी छोटे नहीं रखता,
मगर आँखों में अब अपनी तेरे सपने नहीं रखता.
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बड़ी शिद्दत से अपने इश्क़-ओ-रंजिश मै निभाता हूँ
ख़बर रखता तो हूँ सबकी मगर फ़ितने नहीं रखता.
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दिखाएगा वही सबको जो होंगे सामने उसके,
छुपाकर आईना कोई कभी चेहरे नहीं रखता.
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लहू के दाग़ कितनें ही पड़े हों रूह पर उसकी,
मगर वो शख्स जूते भी कभी मैले नहीं रखता.
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ख़ताएँ कुछ रही होंगी, सज़ाए ज़िन्दगी लायक,
वगरना क्या ख़ुदा मुझको क़रीब अपने नहीं रखता.
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(मौलिक व् अप्रकाशित)
निलेश "नूर"
Comment
शुक्रिया आ. सौरभ सर
आप की नज़रों से गुज़री तो मुकम्मल हो गयी ..
बहुत बहुत धन्यवाद
एक मतला और चार शेर ..
बस ग़ज़ल पूरी.. मगर हम गुम !
क्या साहब !!
दिखाएगा वही सबको जो होंगे सामने उसके,
छुपाकर आईना कोई कभी चेहरे नहीं रखता.
लहू के दाग़ कितनें ही पड़े हों रूह पर उसकी,
मगर वो शख्स जूते भी कभी मैले नहीं रखता.
ख़ताएँ कुछ रही होंगी, सज़ाए ज़िन्दगी लायक,
वगरना क्या ख़ुदा मुझको क़रीब अपने नहीं रखता.
’हाथ’ छू लेने दो फूलों (मेरा नाम ले लेना) को इनायत होगी.. इनायत होगी !!
शुक्रिया डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी; आ. मीना पाठक जी; आ गिरिराज जी; आ. लक्ष्मण जी; आ. नरेन्द्र सिंह जी
मगर आँखों में अब अपनी तेरे सपने नहीं रखता.
आ० नीलेश भाई , हर पंक्ति के लिए दाद कबूल करें l
वाह वा ! क्या खूबसूरत ग़ज़ल कही है , हर शे र उम्दा है , बधाइयाँ आदरणीय नीलेश भाई |
बहुत खूब ...बधाई
नूर जी
बेहतरीन -----
बड़ी शिद्दत से अपने इश्क़-ओ-रंजिश मै निभाता हूँ
ख़बर रखता तो हूँ सबकी मगर फ़ितने नहीं रखता.
ख़ताएँ कुछ रही होंगी, सज़ाए ज़िन्दगी लायक,
वगरना क्या ख़ुदा मुझको क़रीब अपने नहीं रखता
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