" कितने गंदे लोग हैं , छी , सब तरफ गन्दगी ही गन्दगी , उधर किनारे चलते हैं " कहते हुए लड़का बड़े प्यार से हाथ पकड़ कर उसे किनारे ले गया और आँखों में आँखें डाल कर खो गए दोनों |
" साहब मूंगफली ले लो , टाइम पास " |
" ठीक है , दे दो " , और फटाफट पैसे देकर रुखसत किया उसको |
पता ही नहीं चला , कब मूंगफली ख़त्म हो गयी और अँधेरा हो गया | दोनों उठ कर चलने लगे |
लेकिन जैसे ही लड़की ने झुक कर छिलके उठाये , लड़के का हाथ अपने गाल पर चला गया |
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
आभार मीना पाठकजी..
सुन्दर , संदेशप्रद लघुकथा ..सादर बधाई स्वीकारें
आदरणीय श्री विजय कुमार सिंह जी, मतलब समझाने के लिए ह्रदय से आभार! दरअसल इतनी महीन बात मुझे समझ में नहीं आई. क्या करें अक्सर हम लोग ऐसा ही करते हैं एक बार गीतांजलि एक्सप्रेस के टू टायर ए सी के डिब्बे में सीट के नीचे केले के छिलके मैंने भी देखे थे जबकि वहां 'डस्ट बिन' पास ही था.
आभार सुभ्रांशुजी..
आभार जितेंद्रजी..
आदरणीय विनय जी,
जिस जगह को साफ़ करने में काफ़ी वक्त लग जाता है गंदा होने में उसे कुछ समय लगता है. सुन्दर कथा. बधाई.
सादर.
बहुत सही बिंदु को आपने लघुकथा का केंद्र बनाया है आदरणीय विनय जी. कभी कभी बिना आवाज के भी तमाचे पढ़ जाया करते है. बधाई स्वीकारें
आभार राजेश कुमारी जी..
आभार लक्ष्मण प्रसादजी..
आभार सौरभ पाण्डेयजी , स्नेह बना रहे ..
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