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अदाओं से उसका लुभाना गया - ग़ज़ल ( लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’ )

2122    1221     2212

************************
नीर पनघट  से  भरना, बहाना गया
चाहतों का वो दिलकश जमाना गया

***
दूरियाँ  तो  पटी  यार  तकनीक  से
पर अदाओं से उसका लुभाना गया

***
पेड़  आँगन  से  जब  दूर  होते गये
सावनों  का  वो मौसम सुहाना गया

***
आ  गये  क्यों  लटों  को बिखेरे हुए
आँसुओं  का  हमारे  ठिकाना  गया

***
नाम  उससे  हमारा  गली  गाँव  में
साथ  जिसके हमारा  जमाना  गया

***
गंद शहरी जो गिरने लगी रोज अब
झील  के  तट  परिंदों  नहाना गया

***
 ( रचना - 11 दिसम्बर 2011  )
मौलिक और अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

Views: 758

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 25, 2014 at 10:59am


आदरणीय भाई जितेंद्र जी, गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 25, 2014 at 10:59am


आदरणीय भाई नरेंद्र चैहान जी, गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 25, 2014 at 10:59am


आदरणीय भाई श्यामनरायन जी, सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 25, 2014 at 10:58am


आदरणीया मीना बहन उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 25, 2014 at 10:58am


आदरणीय भाई विजय शंकर जी गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 25, 2014 at 10:58am


आदरणीय भाई पवन कुमार जी, गजल की सराहना के लिए आभार । आपने विलकुल सही फरमाया कि अगर हम आगनों के मान को समझते तो सावन का मौसम सुहाना ही रहता । शहरी सभ्यता में ही नहीं अब तो ग्रामीण परिवेश में भी आगनों का महत्व समाप्त सा ही हो गया है । उस पर वृक्षों के लिए अपनापन भी समाप्त सा हो गया है । काश फिर से पुराने दिन लौट आएं ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 25, 2014 at 10:58am

आदरणीय भाई गोपाल नारायन जी,गजल का अनुमोदन और प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 24, 2014 at 8:33pm

पेड़  आँगन  से  जब  दूर  होते गये
सावनों  का  वो मौसम सुहाना गया-----बहुत सुन्दर  शेर 

इस उम्दा ग़ज़ल के लिए दाद कबूलें 

***

Comment by Sarita Bhatia on August 24, 2014 at 1:39pm

वाह भाई धामी जी बहुत खूब 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 23, 2014 at 10:23pm

पेड़  आँगन  से  जब  दूर  होते गये
सावनों  का  वो मौसम सुहाना गया...........बहुत सुंदर. दिली बधाई आदरणीय लक्ष्मण जी

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