वो मेरा कुछ नहीं लगता
और मैं कोई महान व्यक्ति भी नहीं
फिर भी बार बार वो
मेरे पैर पकड़ रहा था
पता है क्यों ?
मैंने सिर्फ दो रोटी दी उसे
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बहुत दुश्मन है उसके
गलती ?
बहुत अच्छा आदमी है वो
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सिसकियाँ मत लो ग़म-गीं हवाओ
चुप हो जाओ
पता है क्यों?
वो आ रहीं है
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लोग कहते है उनकी आँखों में
प्यार का समंदर है
फिर भी मैं क्यों ?
प्यासा लौटा
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राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
अमुल्य सुझाव हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीया प्राची जी। ..... सादर
अमुल्य सुझाव हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीय सौरभ जी। ..... सादर
बहुत बहुत आभार आदरणीय गोपाल नारायण जी
बहुत बहुत आभार आदरणीया rajesh kumaari जी
बहुत बहुत आभार भाई pawan kumaar जी
बहुत बहुत आभार आदरणीया savita जी
बहुत बहुत आभार आदरणीया saritaa जी
बहुत सार्थक खूबसूरत कथ्य हर क्षणिका का ...पर शिल्प अभी और कसा जा सकता था.
दूसरी और चौथी क्षणिका पर विशेष बधाई प्रेषित है
क्षणिकाएँ वैचारिक रूप से बहुत अच्छी हैं. इसके लिए अनेकानेक बधाइयाँ
वैसे प्रस्तुीकरण और अच्छा हो सकता है. हो सकता है अंतर्निहित भाव को स्पष्ट करने के लिए प्रस्तुतियों में प्रश्नवाचक वाक्यांश डालना एक प्रयोग हो, लेकिन इन वाक्यांशों के बिना प्रस्तुतियाँ अधिक सधतीं.
खैर हम यों भी कुछ इतर सोच लेते हैं. अन्य पाठकों के विचारों को जानना भी उचित होगा.
शुभेच्छाएँ
पाठक जी
क्षणिकाओ में है दम
पता है क्यों ?
आप नहीं किसी से कम i
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