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कभी लबों तक पँहुचता प्याला न छीनिए
ग़रीब के हाथ से निवाला न छीनिए
यतीम का बचपना निराला न छीनिए
जमीन, दरगाह या शिवाला न छीनिए
बड़ी नहीं कोई चीज़ तहजीब से यहाँ
नक़ाब, सिर पे ढका दुशाला न छीनिए
नसीब में क्या लिखा यहाँ कौन जानता
किसी जवाँ दीप का उजाला न छीनिए
समान हक़ है मिला सभी को पढ़ाई का
गरीब बच्चों से पाठ शाला न छीनिए
जुड़े खुदा से वहाँ इबादत के तार हैं
उन उँगलियों में थिरकती माला न छीनिए
पुछल्ला ---
यकीं नहीं है कि वो शराफ़त दिखायेगा
कभी किसी बेवड़े से हाला न छीनिए
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(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
जितेन्द्र गीत भैया ,आपको ग़ज़ल पसंद आई आपका तहे दिल से शुक्रिया ..पुछल्ले के लिए भी :)))
. बहुत ही सुंदर भावपूर्ण गजल, पुछल्ला तो बहुत ही बेहतरीन रहा. :))) दिली दाद कुबूल कीजियेगा आदरणीया राजेश दीदी
आ० सुरेन्द्र कुमार भ्रमर जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ ,दिल से बहुत- बहुत आभार आपका.
आ० डॉ.आशुतोष जी ,आपको ग़ज़ल उसके भाव पसंद आये आपका अनुमोदन मिला तहे दिल से आभारी हूँ
यतीम का बचपना निराला न छीनिए
जमीन, दरगाह या शिवाला न छीनिए
बड़ी नहीं कोई चीज़ तहजीब से यहाँ
नक़ाब, सिर पे ढका दुशाला न छीनिए
आदरणीया राजेश कुमारी जी बहुत खूब लिखा आप ने काश लोग गौर करें तो ये समाज सुधर ही जाए सुन्दर
आभार
भ्रमर ५
आ० लक्ष्मण भैया ,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ | दिल से आभार आपका ,हाँ पहुँचता में ता की मात्रा गिराई गई है|
आ० नरेन्द्र सिंह चौहान जी ,आपको ग़ज़ल के भाव पसंद आये मेरा लिखना सार्थक हुआ तहे दिल से आभारी हूँ |
आदरणीया राजेश बहन , सबसे पहले इस खुबसुरत गजल के लिए हार्दिक बधाई ।
साथ ही एक संशय है आपने मतले में पहुचता में ता की मात्रा गिराई गयी है या ध्वनि ही लधु बन रही है मार्गदर्शन करें ।
आ० श्याम नारायण वर्मा जी,आपको ग़ज़ल पसंद आई तहे दिल से शुक्रिया आपका सादर.
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