“हेप्पी टीचर्स डे”(संस्मरण)
सन १९८६ में विशाखापत्तनम नेवल पब्लिक स्कूल में शिक्षण काल के दौरान का ये वाकया.... छठी कक्षा का सबसे शरारती छात्र आये दिन कोई न कोई शरारत करना और ढेर सारी डांट खाना|होम वर्क कभी पूरा करके ना लाना क्लास में दूसरे पढ़ते हुए छात्रों को भी डिस्टर्ब करना मानो उसकी आदत ही बन गई थी|बहुत बार दंड देकर दुःख भी होता था,किन्तु वो था कि सुधरने का नाम ही नहीं लेता था|माँ बाप भी आकर मुझे बोलते थे की मैडम आप ही इसे सुधार सकती हो|उस दिन तो हद ही हो गई जब वो मेरी हिदायतों को रिपीट करने लगा अर्थात मेरी ही नक़ल उतारने लगा| पहली बार मेरी क्रोध की सीमा टूट गई मेरा हाथ उस पर उठामगर वो मुस्कुराता रहा| अगले दिन शिक्षक दिवस था सब बच्चे फूल भेंट कर रहे थे|फिर वो लड़का आया कुछ झिझकते हुए उसने अपनी शर्ट के नीचे पहने बनियान की पाकेट से एक बर्फी निकाली और मेरी हथेली पर “हेप्पी टीचर्स डे” कह कर रख दी और मेरी और देखने लगा,न जाने उसकी आँखों में वो कैसा अनुरोध था कि मैंने वो बर्फी उसी के सामने खाई उसके प्रति वो सारा क्रोध पल भर में गायब हो गया उसको आशीर्वाद दिया .उस दिन के बाद से उस बच्चे में अनोखा व्यवस्थित बदलाव देखा.मन लगा कर पढने लगा, फाइनल में तो उसने सबको चौंका दिया बहुत अच्छी पोजीशन से पास हुआ| मैं आज तक नहीं समझ सकी कि वो बदलाव उसमे अचानक कैसे आया ,सोचती हूँ की आज भी वो कहीं मिले तो उससे पूछूँ|जब भी शिक्षक दिवस आता है मुझे वो बच्चा याद आता है|
(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Comment
आदरणीया , हाथ उठाकर भी रोक लेने का ही यह परिणाम है । अब तो वह जीवन भर आपको याद कर हाथ जोड़ता होगा।
महनीया
सर्प्रथम एक शिक्षिका के रूप में आपको प्रणाम I आपका संस्मरण सुन्दर एवं प्रेरक है i कृपया मेरी बधाई रूपी बर्फी स्वीकार करे i सादर i
आ० कल्पना रामानी जी ,आपको संस्मरण पसंद आया हार्दिक आभार आपका ,सच ही है की कभी कभी कुछ घटनाएँ कभी भूलती नहीं
प्रिय राजेश जी, सकारात्मक सोच का परिणाम हमेशा सुखद होता है। हम किसी के मन की भावनाओं को समझे बिना उसे अच्छा या बुरा मान लेते हैं, सिक्के का दूसरा पहलू नहीं देखते। आपने स्वयं इस घटना को जिया है, इसलिए यह यादगार बन गया है। पढ़कर अच्छा लगा। साझा करने के लिए बहुत बधाई आपको
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