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न होना दूर नज़रों से कसम हमको खिलाती थी
न दे जब साथ लब उसके इशारो से बुलाती थी

किताबों में छुपाती थी दिया हमने जो दिल उसको
बचा नज़रे सभी की वो उसे दिल से लगाती थी

चुरा नज़रे सभी की हम मिले जब बाग में इक दिन
लगा कर वो गले हमको बढ़ी धड़कन सुनाती थी

कभी आँखों मे डाले अाँख कर देता शरारत तो
चुरा कर वो नज़र हमसे जरा सा मुस्‍कुराती थी

न भूलेगे कभी हम तो बिताये साथ पल उसके
छुपा कर चाँद सा मुखड़ा हमें हरदम सताती थी

मौलिक एवं अप्रकाशित

अखंड गहमरी

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Comment by Akhand Gahmari on September 7, 2014 at 8:15pm

हम आपके मार्गदर्शन एवं उत्‍साहवर्धन्‍ा के सदैव आकांक्षी है मेरा प्रणाम स्‍वीकार करें आदरणीय डा0 आशुतोष मिश्रा जी

Comment by Akhand Gahmari on September 7, 2014 at 8:15pm

हम आपके मार्गदर्शन एवं उत्‍साहवर्धन्‍ा के सदैव आकांक्षी है मेरा प्रणाम स्‍वीकार करें आदरणीय लक्ष्‍मण धामी जी

Comment by Akhand Gahmari on September 7, 2014 at 8:14pm

हम आपके मार्गदर्शन एवं उत्‍साहवर्धन्‍ा के सदैव आकांक्षी है मेरा प्रणाम स्‍वीकार करें आदरणीय डा0 गोपाल नारायण श्रीवास्‍तव जी

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 7, 2014 at 7:17pm

चुरा नज़रे सभी की हम मिले जब बाग में इक दिन

लगा कर वो गले हमको बढ़ी धड़कन सुनाती थी.........सुनहरे पलो की याद दिलाती ..गुदगुदाती शानदार रचना ..बहुत पसंद आयी ..सादर बधाई के साथ 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 7, 2014 at 4:50pm

लाजवाब गजल हार्दिक बधाइ

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 7, 2014 at 12:57pm

गहमरी जी

मै तो यही कहूँगा -

कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन ---

Comment by Akhand Gahmari on September 7, 2014 at 12:07pm

हम आपके मार्गदर्शन एवं उत्‍साहवर्धन्‍ा के सदैव आकांक्षी है मेरा प्रणाम स्‍वीकार करें आदरणीय शिज्‍जु शकूर  जी

Comment by Akhand Gahmari on September 7, 2014 at 12:07pm

हम आपके मार्गदर्शन एवं उत्‍साहवर्धन्‍ा के सदैव आकांक्षी है मेरा प्रणाम स्‍वीकार करें आदरणीय डा विजय शंकर  जी

Comment by Dr. Vijai Shanker on September 7, 2014 at 11:40am
सुन्दर ,आदरणीय अखंड गहमरी जी , बधाई।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 7, 2014 at 9:34am

बहुत बढ़िया आदरणीय अखंड भाई बधाई स्वीकार करें

कृपया ध्यान दे...

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