हमारे दर्द को दुनियाँ तमाशो में न गा जाये
बजा ताली सभी झूमें हमारा दर्द भा जाये
न आये है किनारे पर अभी ठहरा समुन्दर है।
बड़ी खामोश लहरे हैं कहीं तूफाँ न आ जाये।।
सहेगें जुल्म अब कितना बड़ा जालिम हुआ हाकिम।
पड़ी थी लाश सड़को पे कफन वो बेच खा जाये।।
सभालो अब वतन अपना तबाही का दिखे मंजर
घरों में आज खुशियाँ है कहीं मातम न छा जाये
जला कर आस का दीपक न जाओ छोड़ कर हमको '
कुचलने का हमारा सिर न दुश्मन मौका पा जाये
मौलिक एवं अप्रकाशित अखंड गहमरी
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सभालो अब वतन अपना तबाही का दिखे मंजर
घरों में आज खुशियाँ है कहीं मातम न छा जाये
सुन्दर पंक्तियाँ अच्छे भाव के साथ!
हम आपके उत्सावर्धन एवं मार्गदर्शन्ा के सदैव आकांक्षी है नमन स्वीकार करें आदरणीय Dr. Vijai Shanker जी
हम आपके उत्सावर्धन एवं मार्गदर्शन्ा के सदैव आकांक्षी है नमन स्वीकार करें आदरणीय राम शिरोमणी पाठक जी
हम आपके उत्सावर्धन एवं मार्गदर्शन्ा के सदैव आकांक्षी है नमन स्वीकार करें आदरणीय हरिवल्लभ्ज्ञ शर्मा जी
हम आपके उत्सावर्धन एवं मार्गदर्शन्ा के सदैव आकांक्षी है नमन स्वीकार करें आदरणीया कल्पना रामानी जी
हम आपके उत्सावर्धन एवं मार्गदर्शन्ा के सदैव आकांक्षी है नमन स्वीकार करें आदरणीय डा0 गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी
अति सुन्दर ग़ज़ल आदरणीय गहमरी साहब,
सहेगें जुल्म अब कितना बड़ा जालिम हुआ हाकिम।
पड़ी थी लाश सड़को पे कफन वो बेच खा जाये।।...हकीक़त बयाँ करते अशआर ...लाजबाब...बधाई आपको.
आदरणीय गहमरी जी, बहुत सुंदर गजल कही है, मन से बधाई आपको
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