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तेरी मेरी बात पर फँस जाता इन्सान,

धन दौलत को देखकर, खो देता ईमान |

 

अग्नि परीक्षा दे रही कितनी सीता आज,

दुष्ट दुशासन लूटते, नित श्यामा की लाज |

रिश्ते नातो में भरो मधुर प्रेम का सार

प्यार भरे व्यवहार से मिटते कष्ट हजार |

संस्कारी परिवार में, बच्चें ही जागीर, 
ह्रदय प्रेम उमड़े सदा, दिल से रहे अमीर |

भावुकता वरदान हो, समझे मन की पीर,
गलत काम का खौफ हो, खुशियों में हो सीर |

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 15, 2014 at 8:21pm

बहुत ही सुंदर संदेशप्रद दोहे रचे आपने आदरणीय लक्ष्मण जी, आपको बहुत -२ बधाई

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 14, 2014 at 3:56pm

शुक्रिया श्री नरेंद्र सिंह चौहान जी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 14, 2014 at 3:03pm

आपका हार्दिक आभार श्री (डॉ) गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी | सादर 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 14, 2014 at 3:01pm

आपका हार्दिक आभार आदरणीया महिमा श्री जी, और श्री श्याम नारायण वर्मा जी | सादर 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 12, 2014 at 6:35pm

दोहे पसंद करने के लिए शुक्रिया श्री अखंड गहमरी जी 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 11, 2014 at 5:49pm

लडीवाला जी

आपके दोहों में बेहतर सुधार हुआ है  i मेरी बधाई i

Comment by Shyam Narain Verma on September 11, 2014 at 10:47am
" सुंदर रचना के लिए बहुत बधाई सादर............. "
Comment by MAHIMA SHREE on September 10, 2014 at 10:42pm

बहुत सुंदर दोहें हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय लक्ष्मण सर सादर 

Comment by Akhand Gahmari on September 10, 2014 at 7:50pm

रिश्ते नातो में भरो मधुर प्रेम का सार

प्यार भरे व्यवहार से मिटते कष्ट हजार |--------------हजारों बातो की यह एक है बात प्‍यार से बढ़कर कुछ नहीं बहुत बधाई हो आदरणीय नमन स्‍वीकार करें 

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