कुण्डलिया छंद (हिंदी दिवस पर विशेष)
हिंदी निज व्यवहार में, भरती मधुर सुगंध,
देवनागरी में मिले, संस्कृति की चिरगंध |
संस्कृति की नवगंध, और सुगन्ध सी वाणी
सीखे नैतिक मूल्य, पढ़े जो हिंदी प्राणी ||
लक्ष्मण कर सम्मान, सजे माथे जो बिंदी
करती रहे प्रकाश, सरस यह भाषा हिंदी ||
(2)
आता है हिन्दी दिवस, जाने को तत्काल
अपनी भाषा का सदा उन्नत रखना भाल |
उन्नत रखना भाल,करे विकास तब भाषा
हिंदी में हो बात, रहे क्यों भाव निराशा
लक्ष्मण लो अब ठान, रहे हिंदी से नाता
यह अपना त्यौहार, दिवस हिंदी का आता |
(3)
हिंदी में ही बोलकर, छोड़े मन पर छाप,
सत्य मेव जयते लिखे, हिंदी में जब आप |
हिंदी में जब आप लिखे गजल सी गीतिका
मन को भावे तान सुने जब गान प्रीतिका
लक्ष्मण देवे मान, सजे ललाट पर बिंदी
भरे भाव के रंग, निज व्यवहार में हिंदी ||
(मौलिक व अप्रकाशित)
-लक्ष्मण रामानुज लडीवाला
Comment
छंद पसंद करने के लिए शुक्रिया श्री खुर्शीद भाई |
हार्दिक आभार आपका डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी और श्री हरीवल्लभ शर्मा जी | सादर
आदरणीय भाईसाहब बहुत सुन्दर छंद हैं ,हार्दिक अभिनन्दन |सादर
बहुत सुन्दर कुण्डलिया छंद...बधाई आपको आदरणीय लादिवाला जी.
लडीवाला जी
बहुत बेहतरीन कुण्डलिया रची आपने i
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