धन प्रभुता ना मिले विद्वान् जो ना हो साथ |
कर्म यज्ञ में दे आहुति विद्वान् ही का हाथ ||
विद्वता का उपयोग कर धनवान धन कमाए|
विद्वान् इस राह चले तो धनी निर्धन बन जाए||
धनवान को वाहन मिले संग्रह करके धन |
विद्वान वाहन में घूमे निग्रह करके मन ||
धन की करे चौकीदारी हर रात धनवान |
ज्ञान का सृजन करे हर रात विद्वान् ||
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
चंद्रेश जी
आपके दोहों को पढ़कर लगा कि आप में भाव तो है पर दोहों का कठिन शिल्प आप बिलकुल नहीं जानते i मै आपको टिप्स देता हूँ i दोहे में चार चरण है आप जानते है i पहले व् तीसरे चरण में मात्रा का क्रम दो प्रकार से रख सकते है 4+4+3+2 या 3+3+2+3+2 बचे हुए चरणों का क्रम होगा 4+4+3 या 3+3+2+3 i आप प्रयास करे मजा आएगा i सस्नेह i
आदरणीय सौरभजी, लक्ष्मण जी|
तहे दिल से धन्यवाद कि आपने इतनी गहराई इसे पढ़ा| आपके विचार एवं उत्तम सलाह भी सर-आँखों पर| आदेशानुसार आलेख पढ़ कर आवश्यक संशोधन करने के पश्चात हाज़िर होता हूँ|
भाई श्री चन्द्र शेखर जी, आदरणीय सौरभ जी की सलाह अनुसार दोहा छंद के विधान को समझे | मूल रूप से 13-11 मात्राओं
के चार चरणों (दो पंक्तियों) में दोहा प्रथम और तृतीय चरण 13 मात्राओं का विषम और दूसरी व चौथी पंक्ति 11 मात्राओ की
सम चरण की होती है | विषम चरण का अंत लघु गुरु से और सम चरण का अंत गुरु लघु से किया जाता है | इसी परिप्रेक्ष में
आप अपने दोहे को स्वयं जांच ले | प्रस्तुति के लिए धन्यवाद
आपकी प्रस्तुति के लिए धन्यवाद.
किन्तु एक अनुरोध है चन्द्रशेखर भाई, कि अपने उत्साह को सदिश करें. इस मंच पर दोहा छन्द तथा उसके विधान को लेकर कई आलेख उपलब्ध हैं. उनका अध्ययन करें.
बहुत सुंदर दोहें , हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय....................... |
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