हद से अपनी गुजर गया कोई ।
चुपके दिल में उतर गया कोई ।।
आँख में आसमान लाया था
मेरी अंजुरी में भर गया कोई ।।
छोटी बच्ची सा झूल बाहों में
मन की हर पीर हर गया कोई
टूटी छत से उतर के कमरे में
चाँदनी सा पसर गया कोई ।।
डाल पे फूल खिल गया जैसे
स्वप्न जैसे सँवर गया कोई ।।
रोशनी को सहेजने में ही
कतरा-कतरा बिखर गया कोई ।।
सामने वालमीकि के फिर से
क्रौंच पर वार कर गया कोई
बह के आँसू के संग आँखों से
मार के हमको मर गया कोई ।।
.............. सुलभ
मौलिक तथा अप्रकाशित
Comment
बहुत-बहुत आभार आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी !
बहुत-बहुत आभार जितेन्द्र 'गीत' जी !
सुलभ जी
क्या बात है i एक से बढ़कर एक मोती i स्वच्छ , धवल ,आबदार i
रोशनी को सहेजने में ही
कतरा-कतरा बिखर गया कोई.....बहुत खूब. बधाई आपको आदरणीय सुलभ जी
बहुत-बहुत आभार Dr. Vijai Shanker जी !
बहुत-बहुत आभार सूबे सिंह सुजान जी !
बहुत-बहुत आभार khursheed khairadi जी !
बहुत-बहुत आभार गिरिराज भंडारी जी !
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