अरे चाचा !
तुम तो बिलकुल ही बदल गये
मैंने कहा – ‘ तुम्हे याद है बिरजू
यहाँ मेरे घर के सामने
बड़ा सा मैदान था
और बीच में एक कुआं
जहाँ गाँव के लोग
पानी भरने आते थे
सामने जल से भरा ताल
और माता भवानी का चबूतरा
चबूतरे के बीच में विशाल बरगद
ताल की बगल में पगडंडी
पगडंडी के दूसरी ओर
घर की लम्बी चार दीवारी
आगे नान्हक चाचा का आफर
उसके एक सिरे पर
खजूर के दो पेड़
पेड़ो के पास से गुजरता
धूल भरा गलियारा
गलियारे के किनारे
पिलुआ के हरियाले पेड़
दूसरी ओर राधे दादा के खेत
पिलुआ पर बैठे दो-चार बच्चे
कूदते-फुदकते
एक डाल से दूसरी डाल पर
शोर मचाते लड़ते
ऊसर में ख़त्म होता वह
सर्पाकार गलियारा
उस ठौर जलती थी
गाँव की होली
झांकता था दूर से
लसोढ़े का पेड़
बरसते मेह में
सुलगती थी उसकी गंध
आज ये सब कहाँ है ?
पेड़ो को लील लिया
समय की मार ने
गलियारों को अतिक्रमण ने
मैदानों को बढ़ती बस्ती ने
सभी कुछ तो बदल गया
तुम भी वही है
मै भी वही हूँ
गाँव भी वही है
पर न तुम, न मैं
और न गाँव
कोई भी पहले जैसे नहीं हैं
सब कुछ बदलता है
सब कुछ बदला है
मिट भी जायेगा
एक दिन !
(मौलिक व अप्रकाशित )
Comment
समय कितनी गति से चल रहा है सब कुछ तो बदल रहा ..ग्रामीण परिवेश अब वह नहीं रहा..
तुम भी वही है
मै भी वही हूँ
गाँव भी वही है
पर न तुम, न मैं
और न गाँव
कोई भी पहले जैसे नहीं हैं
सब कुछ बदलता है
सब कुछ बदला है
मिट भी जायेगा
एक दिन !...बहुत सुन्दर चित्रण किया आपने सादर बधाई.
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ... सादर बधाई ......................
यादों को सींचती
पुराने दिन तलाशती सुंदर रचना आदरनीय गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी !
सादर नमन
वर्तमान गाँव की बदलाओ भरी जिंदगी के दुखद पहलुओं को साकार करती इस रचना पर साधुवाद माननीय डॉ गोपाल नारायन जी.
मित्र
आपका स्तवन i
आदरणीय करुण जी
आपका अनन्य आभार i
आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , गाँव का बहुत सुन्दर चित्र खींचा है आपने , और उजड़ते गाँव की पीड़ा भी साफ़ झलक रही है | बहुत सुन्दर रचना ! आपको बधाइयाँ |
आदरणीय डॉ. श्रीवास्तव जी,
आप ने बदलते गाँव और उनके रूखेपन का अत्यंत मार्मिक चित्र इस ताज़ी-टटकी कविता में उकेर कर रख दिया है --
"सभी कुछ तो बदल गया
तुम भी वही है
मै भी वही हूँ
गाँव भी वही है
पर न तुम, न मैं
और न गाँव
कोई भी पहले जैसे नहीं हैं
सब कुछ बदलता है
सब कुछ बदला है
मिट भी जायेगा
एक दिन !"
...हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ !
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