तीर के अपने नियम हैं जिस्म के अपने नियम
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2122 2122 2122 212
तीर के अपने नियम हैं जिस्म के अपने नियम
एक का जो फर्ज़ ठहरा दूसरे का है सितम
कुछ हक़ीक़त आपकी भी सख़्त थी पत्थर नुमा
और कुछ मज़बूतियों के थे हमे भी कुछ भरम
मंजिले मक़्सूद है, खालिश मुहब्बत इसलिए
बारहा लेते रहेंगे मर के सारे फिर जनम
किस क़दर अपनी मुहब्बत मुश्किलों मे फँस गई
इस तरफ खींचे मुहब्बत उस तरफ खींचे धरम
तुम मुहब्बत को मुहब्बत की नज़र से देखना
तब मुहब्बत को समझ पाओगी,ओ संगे सनम
गर वफ़ा की बात दिल में है नहीं, क्या फ़ाइदा
लाख वादे तुम करो , खाते रहो जितनी क़सम
अश्क़ का दर्या बहा जब लोग देखे तो मगर
संग दिल लोगों की आँखें हो न पायीं थोड़ी नम
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय गुमनाम भाई , आपका बहुत शुक्रिया |
आदरणीय बड़े भाई विजय भाई , आपका हार्दिक आभार |
आदरणीय खुर्शीद भाई , हौसला अफजाई के लिए आपका शुक्रिया |
आदरणीय भुवन भाई , सराहना के लिए आपका शुक्रिया |
सुंदर गजल के लिए हार्दिक बधाई "
अच्छी गज़ल के लिए बधाई।
कुछ हक़ीक़त आपकी भी सख़्त थी पत्थर नुमा
और कुछ मज़बूतियों के थे हमे भी कुछ भरम
आदरणीय गिरिराज साहब बहुत उम्दा शेर है |तमाम ग़ज़ल शानदार है |हार्दिक अभिनन्दन
समय के अनुरूप सभी शेर है, आदरणीय आपके उत्रोत्तर विकास को नमन, हार्दिक बधाई
आदरणीय श्याम नारायण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आभार आपका |
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