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ग़ज़ल - तीर के अपने नियम हैं जिस्म के अपने नियम ( गिरिराज भंडारी )

 तीर के अपने नियम  हैं जिस्म के अपने नियम

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2122       2122        2122     212

तीर के अपने नियम  हैं जिस्म के अपने नियम

एक  का जो फर्ज़  ठहरा  दूसरे  का  है सितम

 

कुछ हक़ीक़त आपकी भी सख़्त थी पत्थर  नुमा

और कुछ  मज़बूतियों के थे हमे भी  कुछ भरम

 

मंजिले  मक़्सूद  है, खालिश  मुहब्बत  इसलिए

बारहा  लेते   रहेंगे  मर के  सारे  फिर  जनम

 

किस क़दर अपनी मुहब्बत मुश्किलों मे फँस गई 

इस तरफ खींचे मुहब्बत उस तरफ  खींचे  धरम

 

तुम  मुहब्बत को  मुहब्बत की नज़र से देखना

तब मुहब्बत को समझ पाओगी,ओ संगे  सनम

 

गर वफ़ा  की बात दिल में है नहीं, क्या फ़ाइदा

लाख वादे तुम करो , खाते रहो जितनी  क़सम

 

अश्क़  का  दर्या  बहा जब लोग  देखे तो मगर

संग दिल लोगों की आँखें हो न पायीं थोड़ी नम

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मौलिक एवँ अप्रकाशित

 

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Comment by गिरिराज भंडारी on September 27, 2014 at 10:40pm

आदरणीय गुमनाम भाई , आपका बहुत शुक्रिया |


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Comment by गिरिराज भंडारी on September 27, 2014 at 10:39pm

आदरणीय बड़े भाई विजय भाई , आपका हार्दिक आभार |


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Comment by गिरिराज भंडारी on September 27, 2014 at 10:39pm

आदरणीय खुर्शीद भाई , हौसला अफजाई के लिए आपका शुक्रिया |


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Comment by गिरिराज भंडारी on September 27, 2014 at 10:38pm

आदरणीय भुवन भाई , सराहना के लिए आपका शुक्रिया |

Comment by gumnaam pithoragarhi on September 27, 2014 at 7:34pm

सुंदर गजल के लिए हार्दिक बधाई   "

Comment by vijay nikore on September 27, 2014 at 1:38pm

अच्छी गज़ल के लिए बधाई।

Comment by khursheed khairadi on September 27, 2014 at 12:52pm

कुछ हक़ीक़त आपकी भी सख़्त थी पत्थर  नुमा

और कुछ  मज़बूतियों के थे हमे भी  कुछ भरम

 आदरणीय गिरिराज साहब बहुत उम्दा शेर है |तमाम ग़ज़ल शानदार है |हार्दिक अभिनन्दन

Comment by भुवन निस्तेज on September 26, 2014 at 10:57pm
बड़ा आनंद आगया आदरणीय यह खूबसूरत व कामयाब गज़ल पढ़कर....
Comment by रमेश कुमार चौहान on September 26, 2014 at 2:30pm

समय के अनुरूप सभी शेर है,  आदरणीय आपके उत्रोत्तर विकास को नमन, हार्दिक बधाई


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Comment by गिरिराज भंडारी on September 26, 2014 at 10:31am

आदरणीय श्याम नारायण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आभार आपका |

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