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वतन की जान है हिंदी
उपार्जित मान है हिंदी
धरा जो गुनगुनाती है
मुक़द्दस गान है हिंदी
हिमालय फ़क्र करता है
अजल से शान है हिंदी
तेरे वर्के तगाफ़ुल पे
नया फ़रमान है हिंदी
इबादत पे सदाक़त पे
सदा कुर्बान है हिंदी
मेरा मजहब मेरी दौलत
मेरा ईमान है हिंदी
हमारी पाक़ संस्कृति में
बसा सम्मान है हिंदी
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(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Comment
आ० हरिवल्लभ जी,आपकी प्रतिक्रिया से उत्साहित हूँ मेरा लिखना सार्थक हुआ ,तहे दिल से आभार आपका सादर .
प्रिय जितेन्द्र भैय्या ,आपको ग़ज़ल पसंद आई तहे दिल से आभारी हूँ ,शुभ कामनाएं
आ० डॉ. विजय शंकर जी,ग़ज़ल आपको पसंद आई तहे दिल से आभार आपका सादर .
सुन्दर गज़ल .... सादर बधाई..... |
वाह हिन्दी को समर्पित बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई है बहुत बहुत बधाई आपको
हिंदी तो हमारी मातृभाषा है...उसके सम्मान में बहुत सुन्दर ग़ज़ल ..
मेरा मजहब मेरी दौलत
मेरा ईमान है हिंदी
हमारी पाक़ संस्कृति में
बसा सम्मान है हिंदी .....बहुत खूबसूरत अल्फाज़ में सभी शेर शानदार ..बधाई आपको आदरणीया rajesh kumari साहिबा.
मातृभाषा हिंदी की गरिमा में बहुत खूबसूरत गजल. बधाई आपको आदरणीया राजेश दीदी
आ० आशुतोष जी,दिल से आभारी हूँ आपको ग़ज़ल पसंद आई ,दरअसल हिंदी दिवस के लिए लिखी हुई थी ये ग़ज़ल उन दिनों इतनी व्यस्त थी की पोस्ट नहीं कर सकी अब थोडा फ्री हुई हूँ तो अब पोस्ट की .
आदरणीया राज जी ..इस छोटी बहर में बेहई तरीन चुनिन्दा शब्दों से सजी .हिंदी की महत्ता को स्थापित करती शानदार ग़ज़ल ..आपको हार्दिक बधाई सादर प्रणाम के साथ
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