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जबसे मुझसे बिछड़ गया है वो
सबमें मुझको ही ढूढ़ता है वो
मैंने मांगा था उससे हक़ अपना
बस इसी बात पर खफ़ा है वो
मेरी तदवीर को किनारे रख
मेरी तक़दीर लिख रहा है वो
पत्थरों के शहर में जिंदा है
लोग कहते हैं आइना है वो
उसकी वो ख़ामोशी बताती है
मेरे दुश्मन से जा मिला है वो
संजू शब्दिता
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
जबसे मुझसे बिछड़ गया है वो
सबमें मुझको ही ढूढ़ता है वो ii
ग़ज़ल अच्छी बनी है ,बधाई , आदरणीय संजू शब्दिता जी ,
बहुत बहुत सुन्दर
मेरी तदवीर को किनारे रख
मेरी तक़दीर लिख रहा है वो.......वाह! बहुत बेहतरीन शे'र कहा. विशेष रूप से बधाई आदरणीया संजू जी
उसकी वो ख़ामोशी बताती है
मेरे दुश्मन से जा मिला है वो---वाह्ह्ह बहुत शानदार शेर
इस सुन्दर ग़ज़ल पर दाद कबूलें प्रिय संजू जी
" सुन्दर भावों से सजी इस गज़ल के लिए आपको बहुत बधाई ...... " |
मेरी तदवीर को किनारे रख
मेरी तक़दीर लिख रहा वो...इस सुंदर ग़ज़ल के इस शेर के लिए बिशेस रूप से बधाई स्वीकार करें सादर
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