फूल हमेशा बगिया में ही, प्यारे लगते।
नीले अंबर में ज्यों चाँद-सितारे लगते।
बिन फूलों के फुलवारी है एक बाँझ सी,
भरी गोद में माँ के राजदुलारे लगते।
हर आँगन में हरा-भरा यदि गुलशन होता,
महके-महके, गलियाँ औ’ चौबारे लगते।
दिन बिखराता रंग, रैन ले आती खुशबू,
ओस कणों के संग सुखद भिनसारे लगते।
फूल, तितलियाँ, भँवरे, झूले, नन्हें बालक,
मन-भावन ये सारे, नूर-नज़ारे लगते।
मिल बैठें, बतियाएँ इनसे, जी चाहे जब,
स्वागत में ये पल-पल बाँह पसारे लगते।
घर से बेघर कभी ‘कल्पना’ करें न इनको,
तनहाई में ये ही खास हमारे लगते।
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
बिन फूलों के फुलवारी है एक बाँझ सी,
भरी गोद में माँ के राजदुलारे लगते।
----वाह वाह बहुत शानदार
हर शेर काबिले तारीफ दी ,आपने बह्र नहीं लिखी दी इस बार ?
आपको ढेरों बधाई
महनीया
बहुत सुन्दर i
बिन फूलों के फुलवारी है एक बाँझ सी,
भरी गोद में माँ के राजदुलारे लगते।
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