आँक दूँ ललाट पर
मैं चुम्बनों के दीप, आ..
रात भर विभोर तू
दियालिया उजास दे..
संयमी बना रहा
ये मौन भी विचित्र है
शब्द-शब्द पी
करे निनाद-ब्रह्म का वरण..
कोंपलों में बद्ध क्यों
सुगंध देह से उमग ?
आ, सहज उघार दूँ
मैं विन्दु-विन्दु
आवरण..
रात्रि की उठान, किन्तु
स्वप्न शांत-थिर रहें..
भंगिमा से
रोम-रोम
तोष का विभास दे !
रात भर विभोर तू
दियालिया उजास दे.. .
श्रम सधे,
समर्थ हो..
प्रयास की लहर-लहर..
अर्थ स्वेद-धार का
गहन मगर विकर्म-सा !
ज्योति-शृंखला बले
शिरा-शिरा
सिहर-सिहर..
कम्पनों से व्यक्त हो
प्रगाढ़ प्रेम
नर्म-सा !
लालिमा प्रभात की
वियोग की कथा रचे
किन्तु, ’मावसी निशा
सुहाग का
समास दे !
रात भर विभोर तू
दियालिया उजास दे.. .
*********************
--सौरभ
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
आपका हार्दिक आभार आ० आदित्य कुमार जी.
हार्दिक आभार, आ० अभिनव अरुण जी
आ० विजय निकोर सर, जैसा कि मैंने आ० विजय मिश्र जी से निवेदन किया, विलम्ब से ही सही, अपनी रचना पर आपको आभार देने के क्रम में पुनः आना रोमांचित कर रहा है. यह अवश्य ःऐ, कि नवगीत 2014 का ही है.
उत्साहवर्द्धन हेतु आपका हार्दिक आभार.
आ० विजय मिश्रजी, विलम्ब से ही सही, अपनी रचना पर आपको आभार देने के क्रम में पुनः आना रोमांचित कर रहा है.
उत्साहवर्द्धन हेतु आपका हार्दिक आभार.
पढ़ कर बहुत अच्छा लगा और मै तो क्या कहूँ। सुबह दीपोत्सव कवि शिरोमणि अग्रज श्री सौरभ जी !
बहुत सुन्दर बहुत ही सुन्दर गीत रचना ..क्या खूब शब्द शिल्प भाव प्रवाह सब कुछ उत्कृष्ट !! नमन है ...सादर नमन है !!!
आपकी रचनाधर्मिता अद्भुत है, यह एक निर्विवाद सत्य है।
नवगीत बहुत अच्छा लगा। कथ्य और शिल्प दोनों ही मोहक हैं।
हार्दिक बधाई, आदरणीय सौरभ जी।
आदरणीया छायाजी, आपको प्रस्तुत रचनाप्रयास सुगढ़ लगा, एक प्रयासकर्ता के तौर पर यह मेरे लिए भी आश्वस्तिकारी है. अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीया.
आदरणीय सत्यनारायणजी, आपकी उपस्थिति की प्रतीक्षा थी. रचनाकर्म का अनुमोदन आश्वस्तिकारक लगा.
सादर धन्यवाद
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