1212 1122 1212 112/22
सफर ये राहगुज़र और ये मुकाम नया
हयात देती है अक्सर मुझे यूँ काम नया
अगर नसीब से बच पाये तो गनीमत है
यहाँ हर एक कदम पर है एक दाम नया (दाम=जाल)
न जी सके अभी तक चलिये कोई बात नहीं
करें अब के कोई जीने का एहतमाम नया
ये ज़िन्दगी हो फ़ना रोज़ और रोज़ शुरू
ग़ुरूबे शम्स हो तो चाँद निकले शाम नया
बहुत हुये गमे दौराँ की नज्मे ये शिकवे
चलो कहें कि मसर्रत का इक कलाम नया
ग़ुज़रते वक्त से चुनकर कोई पल ऐ हमराह
चलो कि ज़िन्दगी को दें हम एक नाम नया
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
\\बहुत हुये गमे दौराँ की नज्मे ये शिकवे
चलो कहें कि मसर्रत का इक कलाम नया\\-----बेहतरीन ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें। आ0 शिज्जु भाई जी,
ग़ुज़रते वक्त से चुनकर कोई पल ऐ हमराह
चलो कि ज़िन्दगी को दें हम एक नाम नया
वाआआअह आदरणीय शिज्जु शकूर साहिब वाह बहुत खूब .... हर शे'र में अलग भाव और हर भाव की अलग खूबसूरती … इस बेहतरीन ग़ज़ल की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई कबूल फरमाये सर
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