१-कहा था मैंने
क़र्ज़ न ले उससे
मुफलिशी बेशर्म है
कपडे उतार लेती है
२-वो फिर से चला ढूँढने
दो रोटी
बजबजाते कूड़े के ढेर में
३-नदी के किनारे वाला पेड़
आज प्यास से मर गया
४-मैं मोम था
शायद इसीलिए
धूप में बैठा गयीं मुझे
५-मैं तुमसे हाँथ जरूर मिलाऊंगा
मेरा कद मुकम्मल हो जाने दो
६-मुझे पाने की अजीब हवस है उन्हें
रेत में गिरा आँसू हूँ
फिर भी ढूँढ़ रही हैं
७-तुझे भी नींद नहीं आएगी
किसीसे प्यार करके तो देख
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राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
बहुत सुंदर क्षणिकाएं राम जी !!
आदरणीय पाठक जी ,अच्छी क्षणिकाएं है |बधाई
ये क्षणिकाएँ आप की दूरदृष्टि की परिचायक हैं |
बढियाँ
सोचने के लिए विवश करती क्षणिकाओं के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें। आ0 रामशिरोमनी भाई जी,
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