"माँ ! आज मैं सुबह ही सभी के घर जाकर, दियो में बचे हुए तेल इकठ्ठा कर लाया हूँ,
आज तो पूड़ी बनाओगी ना? "
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
पवन जी
संभवतः कुछ लोग आपकी लघु कथा से सहमत न हो और इसे मात्र व्यंग समझे i कथा के प्रमुख तत्त्व है - वस्तु, चरित्र, सवाद वातावरण, भाषा और उद्देश्य i लघु कथा में सारे तत्व अनिवार्य भी नहीं है i आपकी कथा की वस्तु यह है कि एक लड़का जिसे दीवाली में भी पूडी नसीब नहीं हुयी वह एक अवांछनीय कृत्य कर दिये के बचे तेल बटोर लाया है इस आशा में में कि शायद इससे पूडी बन सके i चरित्र दो है माँ और बेटा i कहानी मे एकल संवाद है जो पर्याप्त है i भाषा कथा के अनुरूप है i वातावरण स्पष्ट है की दीपावली बीत चुकी है i व्यंग्यार्थ इतना स्पष्ट है कि उद्देश्य बताने की आवश्यकता नहीं i मुझे आपकी कथा में कोई कमी नहीं लगती i आश्चर्य है कि आपको उचित मार्क्स नहीं मिल रहे i आप जैसे नए और युवा लेखा को ऐसी रचना पर प्रोत्साहन मिलना चाहिए i पवन तुमने बेहतर कोशिश की है i बधाई हो i
व्यंग्य है या लघुकथा पर जो भी बहुत उम्दा स्तर की रचना है |
बिना कथा वाली व्यंगात्मक टिप्पणियों को लघुकथा के नाम पर बार-बार दी जाने वाली शाबासी का ये चलन ओ बी ओ लघुकथाओं को गलत दिशा में ले जा रहा है, जानकारों को इस पर ध्यान देने की जरूरत है। ये वार्तालाप लघुकथा का हिस्सा तो हो सकते हैं और कुछेक बार लघुकथा भी लेकिन सिर्फ इस ढाँचे को ही लघुकथा कह देना कम से कम मेरे विचार से ठीक नहीं। क्षमा सहित।
बहुत ही प्यारी लघुकथा. दिल को छू गई , आदरणीय पवन भाई. हार्दिक बधाई आपको
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