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"ममी बिस्कुट "22 महीने की उस बच्ची ने तुतलाती आवाज में कहा ।
माँ के बोलने से पहले ही दादी चीखी
" हाँ खिला न बिस्कुट यहा तो तेरे बाप ने पैसे रखे है । 3 बेटियाँ पैदा कर दी । अब तो जिन्दगी भर खिलाना ही है कुतिया कही की ...."
"माँजी गाली मत दो"
"अरे कलमुँही बकरी की तरह लडकियों की रेवड फेला दी और मुझसे जबान लड़ाती है । "
"बच्चे तो भगवान की देन है "
"तो उसी भगवन से इक बेटा क्यों न ले आई ।"
शाम को
"अरी ओ अभागन ! कमरे में मर गई क्या ? इन बकरियों की मेमे को तो बंद करा दे । "
"तीन बेटियाँ क्या मेरा सर खाने के लिए पैदा की थी ...कही जाकर मरती भी नही "
"हाँ मार लो मर ही जाये तो ठीक 2 ही तो बची है ये भी मर जाएगी
"क्यों इक को क्या खा गई या मइके में दे आई "
" कुएँ में फेंक आई.... हाय मेरी बिटिया । "
"अरे नासपीटी ये का कियो रे ..अरे बेटा जल्दी आ रे .. इसने छुटकी को मार डालो रे ...."

मौलिक व अप्रकाशित
किशन

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 13, 2014 at 10:50pm

इस कथा के माध्यम से सुलगती हुई सच्चाई सामने आयी है. विकृति जब अंदर हो तो बाहर के सारे प्रयास बेमानी हैं.

एक अच्छे प्रयास के लिए हृदय से शुभकामनाएँ

Comment by Shubhranshu Pandey on November 2, 2014 at 7:36pm

आदरणीय किशन कुमार जी,

मार्मिक कथा. बालिका पर अत्याचार एक महिला ही करती है.

सादर.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 1, 2014 at 9:24am

मर्मस्पर्शी रचना. बधाई आदरणीय किशन जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 1, 2014 at 8:26am

आज के जीवंत समस्या को बहुत मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया है आपने ,  बहुत सुन्दर , बहुत बधाइयाँ ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 30, 2014 at 11:27pm

घटना अत्यंत दहला देने वाली है. इस तरह से साझा करने के लिए धन्यवाद, भाईजी.

यह अवश्य है, कि, इसे और बेहतरढंग से प्रस्तुत किया जा सकता था. लेकिन इतने पर भी कथा प्रभावी है.

शुभकामनाएँ..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 29, 2014 at 9:42pm

उफ्फ्फ़ बहुत मार्मिक किन्तु एक ऐसा सच जिससे हम सब वाकिफ़ हैं और जिसके विरुद्ध आवाज भी उठा रहे हैं न जाने स्थिति कब सुधरेगी ...बहुत अच्छे ढंग से प्रस्तुति दी है अंत तो झकझोर कर रख देता है बढ़िया लघु कथा  हेतु बधाई आपको किशन कुमार जी 

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