क्योकि में इक नदी हूँ
मेरा कोई दोष नहीं
फिर भी मैं दोषी हूँ
करते तुम सब लोग हो
भरती मैं हूँ ..
क्योकि में इक नदी हूँ
मुझमे भी जीवन है
मेरा भी अस्तित्व है
मेरी एक पहचान है
जो लोग करते पूजा हैं
वही गंदगी भी देते हैं
चुपचाप सब सहती हूँ
क्या करूँ मैं इक नदी हूँ ...
जागो अब भी जागो
विलुप्त हो जाऊ उस से
पहले मुझे बचा लो
नहीं तो रह जाओगे प्यासे
जैसे बीन पानी मछली तरसे ,
जाने कितने दोहन हुए
सीना चीर मेरा जख्मी किये,
क्योकि में इक नदी हूँ
तुम सब को जीवन देती हूँ !!....
"मौलिक व अप्रकाशित"
आलोक
मथुरा
Comment
आदरणीय जितेन्द्र 'गीत' जी आपका दिल से आभार
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी.....बेहद शुक्रिया आपका मेरा हौसला बढाने के लिए
आदरणीय ajay sharma जी.....बहुत बहुत शुक्रिया आपका
आदरणीय rajesh kumari जी.....आपका बहुत बहुत शुक्रिया मेरा हौसला बढाने का
आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी.....मेरा हौसला बढाने का आपका आभार
आदरणीय आलोक जी, बहुत ही सुंदर सार्थक चित्रण करती प्रस्तुति पर बधाई आपको
आदरणीय आलोक भाई , सामयिक विषय में बढिया बात कही है , बधाई स्वीकार करें ।
पहले मुझे बचा लो
नहीं तो रह जाओगे प्यासे
जैसे बीन पानी मछली तरसे ,
जाने कितने दोहन हुए
सीना चीर मेरा जख्मी किये,
क्योकि में इक नदी हूँ
तुम सब को जीवन देती हूँ !!....samvednayon se saji rachna ,,,wah
सम सामयिक प्रस्तुति हमे नदियों को बचाना होगा वरना प्रकृति का कहर भुगतना होगा |बधाई आपको.
ज्वलंत विषय पर अच्छी प्रस्तुति i
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