"यार एक कप चाय मिल जाती तो मजा आ जाता I"
पतिदेव का हुक्म सुन घर की साफ़ सफाई करके थकी हारी पत्नी रसोईघर की तरफ मुड़ गयी.
साहब सोफे पर बैठ कर टीवी ऑन कर मजे से चैनल बदलते हुए कह रहे थे:
"आज तो यार बहुत थक गए, दीपावली पर बाज़ार जाना, उफ्फ्फ्फ़ ...."
पति की हां में हां मिलाते हुए पत्नी चाय देकर वापिस मुड़ गई और अपने काम में लग गयी !
"मौलिक व अप्रकाशित"
आलोक
मथुरा
Comment
आदरणीय Shubhranshu Pandey जी...बहुत बहुत आभार आपका
आदरणीय योगराज प्रभाकर भाई जी .....बहुत बहुत शुक्रिया ..आपका आशीर्वाद मिलता रहे इसी तरह ...
अपनी अपनी थकावट को सुंदरता से शब्द दिए हैं, सच है कि सब कुछ करने के बावजूद भी पत्नी की थकावट सेकेंडरी ही मानी जाती है। इस सुंदर अभिव्यक्ति हेतु हार्दिक बधाई प्रेषित है।
आदरणीय आलोक जी,
हिन्दुस्तान में रहने का ये भी एक पहलु है. जहां महिलाओं के काम को ना तो समझा जाता है और ना ही उसका नाम होता है. विदेशों में घर के काम को भी देश के GDP में जोड़ दिया जाता है. एक बार फ़िर से कथा के लिये बधाई..
सादर.
बढ़िया लघुकथा, हार्दिक बधाई स्वीकारें आ0 आलोक मित्तल जी.
आदरणीय Saurabh Pandey भाई जी.....हम तो कभी नहीं आये...पर आपको रचना पसंद आई इसका आभार ..अगर ईश्वर ने चाह तो आ भी जायेंगे
ए भाई, आप मेरे घर कब आये थे.. ?!!
आदरणीय rajesh kumari जी....हौसला बढाने के लिए दिल से आभार आपका
बात बिलकुल सही है ...थोडा हम समझे थोडा तुम समझो तो जिंदगी की गाड़ी चल निकले ...
आदरनीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी.....हौसला बढाने के लिए शुक्रिया आपका
इस अति की सीमा पार हो गई तभी तो महिलाओं ने बीड़ा उठाया आज इससे उलट सीन भी देखने को मिल रहे हैं यदि दोनों एक दूसरे की परेशानी दिल से समझे तो परिवार में खुशहाली रहे ,बढ़िया लघु कथा ,बधाई आपको.
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